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(४) साथ ही मैं उन सभी सज्जनोंका भी भाभारी हूं जिनने इस पुस्तकके लिये सच्ची घटनायें तथा अपनी सम्मतियां और कवितायें आदि भेजकर मेरे इस कार्यमें सहयोग दिया है। .. इस पुस्तकके विवेकी एवं उत्साही पाठकोंसे मेरा साग्रह निवेदन है कि भाप इसे पढ़कर जनतामें 'मरणभोज' विरोधी विचारोंको फलायें और ऐसा प्रयत्न करें जिससे थोड़े ही समयमें इस भयंकर प्रथाका नाश होजाय । मरण मोजकी प्रथा जैन समाजका एक कलंक है। जो भाई बहिन इस पुस्तककी सहायता लेकर इस कलंकको मिटानेका प्रयत्न करेंगे उनका भी मैं भामारी होऊंगा । चन्दावाडी-सूरत ।
निवेदक:ता० १५-१२-३७.) परमेष्ठीदास जैन न्यायतीर्थ ।
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