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आभार।
मैंने अपने पूज्य पिलाजी श्री सिंघई मौजीलालजीके स्वर्गवास होनेपर मरणमोज नहीं किया, कारण कि मैं मरणभोजको धर्म एवं समाजका घातक एक भयंकर पाप समझता हूं। किन्तु मैंने यह निश्चय किया था कि पिताजीके स्मरणार्थ एक ऐसी पुस्तक लिखी जाय जो 'मरणमोज' के विरोधमें अच्छा आन्दोलन कर सके। इसके लिये मैंने तथा मेरे पूज्य बडे भाई सिंघई मूलचंदजीने १००) के दानका संकल्प किया था। उसमें से २०) के रजत चित्र (भगवान पार्श्वनाथस्वामी और म० महावीर स्वामीके) ललितपुर और महरौनीके मंदिरोंमें विराजमान किये थे। ८०) इस पुस्तकमे लगा दिये हैं। इसके अतिरिक्त ३५) के मूल्यकी ४० प्रतियां चारुदत्त चरित्रकी भी वितरण की हैं।
हमारे मित्र श्री० साकेरचन्द मगनलाल सस्या-सूरतने भी अपने स्व० पिता श्री० मगनलाल उत्तमचन्द सरैयाके स्मरणार्थ इसमें ८०) प्रदान किये हैं। और हमारे मित्र पं० मंगलप्रसादजी शास्त्री ललितपुरने भी अपनी स्व० भावी (धर्मपत्नी सिं० रामप्रसादजी), के स्मरणार्थ २५) प्रदान किये हैं। इस प्रकार यह पुस्तक प्रगट होकर जैनमित्र' और 'वीर' के ग्राहकोंको भेट दीजारही है। इसलिये मैं अपने मार्थिक सहयोग देनेवाले इन मित्रोंका मामारी हूं।
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