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________________ मरचमोज । १७-बच्चे परषाद होगये-एटा जिलेके एक ग्राममें एक गरीब विधवासे उसके पतिका मरणभोज कराया गया। जिससे वह बर्बाद होगई। बिचारी थोड़े ही दिनोंमें घुल घुसकर मर गई और अपने अनाथ बच्चोंको छोड़ गई जो आज भावारा फिरते हैं । उन विचारोंकी भी जिन्दगी बर्बाद होगई। १८-पंचोंको जिमाकर दर दर भटक रही हैदमोहसे पं० सुन्दरलालजी जैन वैद्य लिखते हैं कि यहांकी धर्मशालामें एक जैन विधवा माई । उसके साथ तीन छोटी२ लड़कियां थीं । किसीके तनपर एक भी कपड़ा नहीं था। वह स्त्री मात्र एक फटी धोती पहने थी। उसने रोते हुये अपनी कथा सुनाई कि मैं सागर जिलेके ग्राम की परवार दि. जैन है। एक वर्ष पूर्व पतिकी मृत्यु हुई है । पंचोंने चौथे दिन ही मुझसे तेरईका आग्रह किया और कहा कि सिंघईजीके नाम के अनुस । अच्छी तेरई करो ! मैंने कहा कि मेरे पास एक भी पैसा नहीं है । तब पंचों ने धमकी देकर मेरे जेवर उत. रवा लिये और खूब डटकर नुक्ता किया गया। तेरई के बाद ही कर्जेवाले ( जैन ) मेरे ऊार आटूटे । मुझे अपनी जमीन और मकान देदेना पड़ा। अब मेरे रहने और गुजरका कोई साधन नहीं रहा । तब मैंने पंचोंसे प्रार्थना की। उनने जवाब दिया कि हमने तुम्हारी परवरिशका कोई ठेका तो लिया नहीं और न कोई तेरा दैनदार है। तब मैं निराश होकर इस भूखे पेटको और इन भूखी बच्चियोंको लेकर घरसे निकल पड़ी। मैंने बहुत चाहा, मगर न तो मुझसे मरते बनता है और न भ्रष्ट होते ही बनता है। इसलिये भर यहां भाई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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