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________________ ( ६१ करुणाजनक सच्ची घटनायें । होगई । सारे घर में हाहाकार मच गया । शत्रुओंकी भांखों में मी मांसू आगये । मगर मरणभोजिया लोगोंको तैयार मोजनकी फिक्कर थी । उनने बने हुये भोजनको ढांक मूंदकर रख दिया ! और उस मुर्देको जलाकर दूसरे दिन ही सब लोग लड्डू पूड़ी उड़ाने बैठ गये । घ' में दो युवती विघवायें हाहाकार मचा रही थीं, सर्वत्र महाशोक व्याप्त था, मगर भोजनभट्ट लोगों को इसकी चिन्ता नहीं थी । मैं पूंछता हूं कि जिस घरमें कल ही मृत्यु हुई है I वह घर आज पंचोंके भोजनके योग्य होजाता है ? और जो पण्डितलोग यह कहते हैं कि तेरहवें दिन भोजन कराने पर शुद्धि होती है। उनका ज्ञान विज्ञान ऐसे मौके पर कहां चला जाता है ? ११- पण्डितजीका मरणभोज- सागर के एक उदासीन पण्डितजी की मृत्यु के हड्डू भी वहांके जैनोंने नहीं छोड़े और वह भी ऐसी स्थिति में जबकि उनके घर में एक दिन पूर्व ही एक स्त्री की मृत्यु होगई थी । पण्डितजीका मरणभोज सोमवारको था, किन्तु उसी दिन उनके घर में दूसरी मृत्यु होगई। फिर भी मंगलवारको नुक्ता कर डाला गया । कहिये, कहां गईं वह निपोचियों की शुद्धि और कहां गया वह सारा पाखण्ड ? सच बात तो यह है कि लड्डुओंके सामने सभी कुछ क्षम्य है । १२ - डबल मरणभोज - मारवाड़ प्रान्तके एक ग्राममें एक गरीब जैनकी मृत्यु हुई। घरमें भवेली विधवा थी । पंचोंने मरघटपर ही मरणभोजकी चर्चा शुरू कर दी और तीसरे दिन उस विधवासे मरणभोज के लिये कहा । उसने अपनी साफ अशक्ति प्रगट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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