SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८] मरणभोज। करको उसमें जो रूपया भावे उससे तेरई और विवाह दोनों होजावेंगे। जाति बहिष्कारके भयसे लड़का और उसकी मांने यह स्वीकार कर लिया । दकालोंने प्रयत्न करके दमोहके पास एक ... ग्राममें एक ४५ वर्षके जैनके साथ लड़कीकी सगाई करा दी। १२००) तय हुये । ५००) पेशगी लिये । उनसे खूब डटकर तेरई की गई। १५-२० गांवसे भासपासके व्यवहारी जन भी माये और खूब चकाचक उड़ी। चैत्र सुदी ३को उस लड़कीका विवाह होगया । वर महाशयका यह तीसरा विवाह था। वे एक वर्ष बाद ही स्वर्ग सिधार गये । और उस १६ वर्षीया लड़कीको विधवा बना गये । भाज वह माणभोजिया पंचों के नाम पर आँस - वहा रही है। ४-कुल्हाड़ीसे मारडाले गयेका भी मरणभोजललितपुरके पास एक ग्राममें किसी विद्वेषीने एक जैनको कुल्हाड़ी मारी, जिससे वह मर गया और मारनेवालेको फांसी हुई। फिर भी कुल्हाड़ीसे मरे हुये व्यक्तिके घरवालोंको मरणभोज करना पड़ा और उसमें गांवके तथा भासपासके ग्रामोंके जैनी भी शामिल हुये थे। __ ५-गहने बेचकर मरणभोज किया-जयपुर स्टेटके एक ग्राममें ३० वर्षीय युवक बीमार हुआ। घरमें पत्नी और एक छोटा लड़का था। दरिद्रताके कारण इलाज कराना अशक्य होगया। वैद्यने मुफ्तमें इलाज करनेसे साफ इंकार कर दिया। तब उसकी पत्नीने अपने हाथका गहना गिरवी रखकर वैद्यको ४०) दिये। इलाज होनेपर भी युवककी मृत्यु होगई। तब उस दयाल वैद्यने के Shree Sudharmaswami Gyanbhanda Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy