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मरणभोजके प्रान्तीय रिवाज ।
[ ४३ युवकसंघों, सभाओं और पंचायतों द्वारा इसके लिये प्रयत्न हुये हैं । अभी भी प्रबलता के साथ इसके विनाशका प्रयत्न होनेकी आवश्यक्ता है । जिस दिन जैन समाजसे मरणमोजकी प्रथा मिट जायगी उस दिन हमारी सभ्य समाजके सिरसे एक बड़े मारी कलङ्कका टीका मिट जायगा । मैं वह शुभ दिन बहुत जल्दी ही देखना चाहता हूं ।
मरणभोजके प्रान्तीय रिवाज ।
यह तो मैं पहले ही लिख चुका हूं कि मरणभोजकी प्रथा धार्मिक नहीं है । यदि यह धार्मिक होती तो उसमें इतना अधिक प्रांतीय रिवाज़मेद नहीं होता। दूसरी बात यह है कि मरणभोजके सारे क्रियाकाण्ड पर ब्राह्मण संस्कृतिकी खासी छाप है। इससे सिद्ध है कि मरणभोज जैन शास्त्रानुमोदित नहीं किंतु पड़ोसियोंकी देखादेखी अपने में शामिल कर लिया गया एक पाप है। इसके विविध प्रान्तीय रिवाजोंको देखकर किसे आश्चर्य न होगा कि जैनोंमें मरणभोज कसे आया ?
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श्रद्धेय पं० नाथूरामजी प्रेमीने बुन्देलखण्ड और मध्यप्रांत के मरणोत्तर क्रियाकाण्डके सम्बन्धमें इस प्रकार अपने अनुभव प्रगट किये हैं
"इस तरफ खास तौर से देहातके जैनोंमें, मरणके उपरांत जो क्रियाकर्म किये जाते हैं वे लगभग वैदिक रिवाजोंके अनुसार ही होते हैं। मरनेवाला जितना ही घनी मानी होता है, उसके उपळक्ष्य में ये क्रियायें उतने ही ठाठसे की जाती हैं । प्रायः तीसरे दिन
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