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मरणभोज । गये हैं। भाज भी लोग उन्हें मंगाकर भरकर भेजते हैं। अभी भी .. जो व्यक्ति, युवकसंघ या संस्थायें यह कार्य कर सकें वे काला .
तनसुखरायजी जैन मंत्री दि० जैन परिषद-देहली " से यह फार्म मंगालें या स्वयं अपने हाथोंसे लिखकर उनपर लोगोंके दस्तखत करावें । प्रयत्न करने पर इस डायनी प्रथाका अवश्य ही विनाश हो जायगा।
पुरुषोंकी भांति विवेकशील स्त्रियां भी इस भयंकर प्रथाका नाश चाहती हैं । सतना परिषदके समय श्रीमती लेखवतीजी जैनकी अध्यक्षतामें 'महिला सम्मेलन' भी हुआ था। उसमें करीक १००० बहिनें उपस्थित थीं। उसमें भी मैंने करीब १५ मिनिट मरणभोज विरोधी भाषण दिया था। जिसके फलस्वरूप सभी बहिनोंने मरणभोजमें सम्मिलित न होनेकी प्रतिज्ञा की थी। उस समय श्रीमती लेखवतीजीने बड़े ही मार्मिक शब्दोंमें कहाः
“पण्डितजी तो मापसे मरणभोजमें भाग न लेनेकी बात कहते हैं, किन्तु मैंतो कहती हूं कि जहां मरणभोन होता हो वहां भाप सत्याग्रह करें, दर्वाजे पर लेट जावें और किसीको भी भीतर न जाने दें। फिर भी जिन निष्ठुर पुरुषोंको मरणभोजमें जाना होगा वे भले ही तुम्हारी छाती पर लात रखकर चले जावें । हमें इस निर्दयतापूर्ण प्रथाका शीघ्र ही विनाश कर देना चाहिये।"
इस भाषणका स्त्री पुरुषों पर काफी प्रभाव पड़ा। यदि इसी प्रकार मरणमोन विरोधी भान्दोलन चालू रहे तो एक वर्ष में ही
समस्त जैन समाजसे इस प्रथाका नाम निशान मिट जाय । कई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com