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________________ मरणमोज निषेधक कानून । [२७ मरणभोज निषेधक कानून । यदि समाज इस मयंकर प्रथाका स्वेच्छासे त्याग नहीं करेगी तो वह समय दूर नहीं है जब उसे यह प्रथा कानूनन छोड़ना पड़ेगी। विचारी गरीब और विधवाओंको शक्ति न होने पर भी देखादेखी, नाक रखने के लिये, पंचोंके भयसे अपने पति और पुत्रोंका मरणमोज करना पड़ता है तथा ' लान' में हजारों रुपया बर्वाद कर देना पड़ते हैं। यदि समाजका यह पाप जल्दी दूर नहीं हुमा तो इसके लिये जल्दीसे जल्दी कानून बनाया जाना भावश्यक है। समाज-हितैषियों को इस भोर शीघ्र ही विचार करना चाहिये । यहां कोई यह कह सकता है कि हमारे सामाजिक एवं व्यक्ति. गत कार्यो में कानूनी दखलकी कोई मावश्यक्ता नहीं है। किन्तु यह तो मात्र मनोकलाना है । जब जनता ऐसी रूढ़ियोंमें फंसी रहती है जिनसे उसका विनाश होता रहता है तब उनसे छुटकारा दिलानेके लिये कानूनकी मावश्यक्ता होती है। शारदा एक्ट हमारे सामने है। अपने लड़के लड़कीका विवाह कब कहां और किस आयुमें करना यह माता पिताका व्यक्तिगत कार्य है। किन्तु जब समाजने मूढ़तावश छोटे छोटे बच्चोंका भी विवाह रचाना शुरू कर दिया मौर वह अनेक सामाजिक भान्दोलन होनेपर भी नहीं रुका तब समाजके सामूहिक हितकी दृष्टिसे शारदा कानून बना । इसी प्रकार यदि समाजने मरणभोजकी घातक प्रथाको नहीं छोड़ा तो यह निश्चित है कि उसे रोकने के लिये कानून बनाया जायगा। हर्षका विषय है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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