________________
मरणमोज।
(२) शंका-सम्बन्धीकी मृत्युमे जो शोक होता है उसे भुलानेके लिये नुक्ता (मरणभोज) करना आवश्यक है। मरणभोज करनेसे पंच लोग तथा जातिके स्त्री पुरुष अपने घर माते हैं और सान्त्वना देकर दुःख हलका करते हैं, इसलिये मरणभोज करना मावश्यक है।
समाधान-यह भी अज्ञानतापूर्ण दलील है। सम्बन्धीके मरनेपर यदि मरणभोज करनेसे ही लोग सान्त्वना देने भाते हैं अन्यथा नहीं आयेंगे तो ऐसी भाडूती सान्त्वना प्राप्त करने की आकांक्षा रखना भयंकर भूल है। जो लोग मरणभोजके लोभसे तो सान्त्वना देने आवें और उसके विना नहीं आवें ऐसे नीच पुरुषोंका तो मुंह देखना भी पाप है।
दूसरी बात यह है कि मरणभोज करनेसे यह उद्देश्य भी तो नहीं साता । कारण कि मरणभोजके दिन तो घरके स्त्री पुरुष और भी रुदन करते हैं तथा मरणभोजके बाद भी महीनोंतक दुखी बने रहते हैं। इतना ही नहीं, किन्तु जिन गरीब घरोंसे या अनाथ विधामोंसे शक्ति न होनेपर भी मरणमोन कराया जाता है और वे बिरादरीके भयसे अपना मकान तथा गहनेतक बेचकर मरणमोज करती हैं उनकी सान्त्वना तो क्या होती है, उल्टी जिन्दगी ही बिगड़ जाती है। वे जीवनभरके लिये दुखी होजाती हैं। इसलिये मरणभोजसे सान्त्वना मिलनेकी दलीक व्यर्थ है।
हम देखते हैं कि जिनके यहां मरणभोज नहीं होता या जहां चालीस वर्षसे नीचेका मरणभोन करनेका प्रतिबन्ध है वहां भी तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com