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________________ सका समाधान। __ हां, अर्वाचीन लोगों में इसका रिवाज अवश्य चल पड़ा है। किन्तु हमारा उसी समयसे पतन भी खूब हुमा है। मरणभोज आदि कुरीतियों के कारण सारा देश नष्टभृष्ट होगया है। इसलिये यदि हमारे - पहले के लोगोंने ऐसी मूढताका प्रारम किया था तो क्या हमें भी उसका अनुकरण करना आवश्यक है ? हमें कुछ विवेकसे भी तो काम लेना चाहिये। क्या जिसके पूर्वज चोरी करते थे उसे भी चोरीका अनुकरण करना चाहिये ? जिसके पूर्वज हत्या, व्यभिचार, अनाचार आदि दुष्कृत्य करते थे क्या उसको भी यही दुष्कृत्य करना चाहिये ? यदि पेटायूँ क्रियाकाण्डियोंने पूर्वजों को धोखेमें डालकर मरणमोनकी प्रथा च लू करादी और उनने इसीमें मृतात्माकी मुक्ति मानकर उसे प्रारंम भी करदी तो क्या आज इसका इतना मयंकर परिणाम देखते हुये भी हमें यही करना चाहिये ? - अज्ञान एवं परिस्थिति के वशीभूत होकर पूर्वजोने तो बालवि बाहकी प्रथा भी चालू करदी थी और वे दुधमुंहे बालकबालिकाओं के विवाह करते थे, तो क्या हमें भी उनका अनुकरण करना चाहिये ? निनके पूर्वज पशुयज्ञ करते थे, विधानों को अनिचितामें जलाकर सती बनाते थे, काशी करवतार जाकर आत्महत्या करते थे. यदि. उनकी संतान अपने पूर्वजों की दुहाई दे और कहे कि क्या हमारे पूर्वज मूर्ख थे, तो क्या यह कृत्य भाज भी उचित माने जायंगे ? यदि नहीं तो मात्र मरणभोजके लिये ही क्यों पूर्वजोंकी दुहाई दीजाती है ? पूर्वजों के सभी कार्य अनुकरणीय नहीं होते, किन्तु उनमें यथार्थता और अयथार्थताका विचार करना चाहिये तथा हिताहित भी सोचना चाहिये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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