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________________ ८६ ] मरण मोज । प्रकरण में देख चुके हैं कि थोडेसे आन्दोलन से अच्छी सफलता मिल रही है। इस आन्दोलनको अभी और भी उम्र बनाने की आवश्यक्ता है। इसमें संदेह नहीं कि भान्दोलनका प्रभाव धीरे धीरे बढ़ता जाता है। पाठकों को इस बातका अनुभव होगा कि गत कुछ वर्षों के आन्दोलन से जनता के विचारोंमें बहुत परिवर्तन हुआ है। यही कारण है कि कई जगह ४०-४५ वर्ष से कम आयुके मृतव्यक्तियोंके मरणभोज नहीं किये जाते और कई जगह तो इनकी कतई बंदी होगई है। कितने ही विवेकी लोग अपने जीतेजी ऐसा प्रबंध कर जाते हैं कि मेरे मरनेपर मेरा ' मरणभोज' न किया जाय । अभी पिरावा नि० श्री० चन्दूलाल बल्द बिहारीलालजी जैन ने बाकायदे स्टाम्पपर लिखत की है कि मेरे मरनेपर मेरा मरणभोज न किया जाय । आपके कुछ शब्द यह हैं- "यह रिवाज़ हमारे मज़हब जैन के उसूलके खिलाफ है । मज़हब जैनके मुआफिक किसीके मर जानेके बाद लोगोंके खिलानेका कोई सवाब नहीं माना गया और न मरनेवालेकी रूहको कोई फायदा पहुंचता है । इसलिये अमोलकचन्द जैन पिराबाको वसिमत तहरीर करके रजिस्ट्री करा देता हूं कि मेरे और मेरी औरत सुन्दर बाईके मरने के बाद हम दोनोंका नुक्ता, छहमाही या वर्षी न की जाय । दोनोंके नुक्ता में जो ३५०) खर्च होते उन्हें कायम रखकर उसके सुदका धर्मार्थ उपयोग किया जाय । अगर अमोलकचन्द इसके खिलाफ (मुक्ता) करेगा तो दौलतको नदराहमें लगानेवाला और मेरी रूहको तकलीफ पहुंचानेवाला समझा जायगा । " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034960
Book TitleMaran Bhoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherSinghai Moolchand Jain Munim
Publication Year1938
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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