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अशुद्धम्
येवद
पृष्ठसंख्या पङ्किसंख्या 427 428 9 436
18
15
शुद्धम् यवेद दृढाङ्गाजाड्य स्थावरा विद्ययोः शाश्वतं बहिश्चेति विलय चक्षुरा वत्विति शाखीय
450 453 461 466
14
467
25
477
485
सर्व
486 487 488
5 20 28
दृढाङ्गमजाड्य स्थावारा विद्यायोः शाश्वत बहिश्चति क्लिय च. रा वत्विति शाखय दारु सव वेव दमीद नामभिमरू ऊध्व यद्भवं वदान्तं पद्यविषयाः व्यीवेशषः ब्रह्म वतादि देव ह कल्बना न यति पासप्र संगृह्म
25
12
607 516 618 621 528 631 532 533 535 537 550 555
वेद दमादि नामभिरू ऊर्ध्व यद्दवं वेदान्तं पाद्यविषयः व्यविशेषः ब्रह्म तादि देवा ह कल्पना न याति पासनप्र संगृह्य
20 12
23
24
दव
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