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आत्मनाशक नहीं मालूम देगी परन्तु स्वार्थलोलुप और सुखैषी जीवोंकी बात अलग है। ___ जैन धर्मकी अहिंसा पर दूसरा परंतु बडा आक्षेप यह किया जाता है कि-इस अहिंसा के प्रचारने भारत को परावीन और प्रजाको निवीय बना दिया है । इस आक्षेपके करने वालों का मत है कि अहिंसा के प्रचारसे लोकोमें शौर्य नहीं रहा । क्योंकि अहिंसाजन्य पापसे डर कर लोकोने मांस भक्षण छोड दिया; और बिना मांस भक्षणके शरीरमें बल
और मनमें शौर्य नहीं पैदा होता । इस लिये प्रजाके दिलमेसे युद्धकी भावना नष्ट हो गई और उसके कारण विदेशी और विधीं लोकोंने भारत पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन बना लिया । इस प्रकार अहिंसाके प्रचारसे देश पराधीन और प्रजा पराक्रमशून्य हो गई। __ अहिंसा के बारे में की गई यह कल्पना नितान्त युक्तिशुन्य और सत्यसे परामुख है । इस कल्पनाके मूलमें बही भारी अज्ञानता और अनुभवशुन्यता रही हुई है । जो यह विचार प्रदर्शित करते हैं उनको न तो भारतके प्राचीन इतिहासका पता होना चाहिए और न जमत के मानव समाजकी परिस्थितिका ज्ञान होना चाहिए । भारतकी पराधीनताका कारण अहिंसा नहीं है परंतु भारतकी अकर्मण्यता अज्ञानता और असहि ष्णुता है और इन सबका मूल हिंसा है ! भारतका पुरातन इतिहास प्रकट रूपसे बतला रहा है कि जब तक भारतमें अहिंसाप्रधान धर्मोका अम्युदय रहा तब तक प्रजामें शांति, शौर्य, सुख और संतोष यथेष्ट व्याप्त थे | अहिंसा धर्मके महान उपासक और प्रचारक नृपति मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त और अशोक ये; क्या इनके समयमें भारत पराधीन हुआ या १ अहिंसा धर्मके कहर अनुयायी दक्षिणके कदंब, पल्लव और चौ. छन्य वंशोके प्रसिद्ध प्रसिद्ध महाराजा थे; क्या उनके राजत्वकालमें किसी
परचकने आकर मारतको तताया था ? आहिंसा तत्वका अनुयायी चक्रShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com