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मुकुटबद्ध राजा थे, उन्होंने प्रमुके समक्ष गृहस्थाश्रमके योग्य श्रावकके बारह व्रत धारण किये थे । मगध देशके स्वामी श्रेणिकराजा तो आप के परमभक्त ही थे । उनका लडका कूणिक (अशोकचन्द्र) जो कि बापकी मृत्युके बाद चंपानमरीमें राज्य करने लगा था, बडा प्रतापी साम्राज्यशाली शुद्ध जैनधर्मी राजा था ।। २ ।। उज्जैनी का नरेश चन्डपद्योत महावीर देव का गाढ भक्त था ।
पंजाब के पश्चिम भागमें “ वीतभयपत्तन " जिसे आज कल मेरा कहते हैं एक बडा आबाद और अकलीम शहर था वहाँ का राजा उदयन शुद्ध श्रावक था | कूणिक ( अशोकचन्द्र ) का उत्तराधिकारी उदायी राजा जैनधर्ममें बडा ही चुस्त था, और महावीर भगवानकी शिक्षाओंको पूर्णप्रेम से पालता था । अन्तमें प्रमुके पास दीक्षा लेकर मोक्षाधि कारी हुआ था | प्रदेशीराजा प्रमु को बढे जलूस के साथ वन्दन करनेके वास्ते आवा था |राजा दशार्णभद्र जहाँ तक गृहस्थाश्रम में रहा पूर्णप्रेम से प्रमुसेवा मे तत्पर रहा, और अन्तमें जगद्गुरु महावीर परमात्माकी दीक्षा लेकर कल्याणमाजन हुआ । मगवद्देवके निर्वाण समय अपापा नगरी में किसी कारणवशात् अठारह राजा एकत्र हुए थे, ये सब जैन धर्मा थे ।
॥महधिक श्रावक । ( १ ) वाणिज्य ग्रामका रईस आनन्द नामा जमीनदार आपका श्रावक था, इस के पास बारह करोड सुवर्ण मुहरें और चालीस हजार गायें थीं। यह व्यापार कर्ममें बहा प्रवीण था | इसके पाँचसौ जलयान् (जहाज ) समुद्रमार्गसे भ्रमण किया करते थे। और पाँचसौ गाडि ये लकरी घास वगैरह के लिये रहती थीं ।
(२) कामदेव श्रावक जो कि चंपानगरीका रहनेवाला था इसके यहाँ १८ कोट अशरफियाँ और ६० हजार गाये थीं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com