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________________ (५३) ही बिनदास बोला कि रीषभदास मेरी गलती हुइ है मे तुम्हारा गुनहगार हुँ मेरी नीतमे फरक पडाथा यह आपका पांच रत्न है आप ले लिजिये ओर भी तुमारे जीतना द्रव्य चाहिये वह मेरेसे के जावे आप मेरे साधर्मी भाइ है इत्यादि सत्कार कर पांच रत्न वापीस दे दीये वहांसे अपने अपने कर्मानुसार भवभ्रमण करते हुवे हे धनदत्त आपतो हो जिनदासका जीव और पूर्वभवके सब कुटुम्ब इसबख्त आपको कर्म भोगवनेके लिये मीला है बारहा - टोका बारह वर्ष दुःखके हुवे है जिस्मे तो आपकि भावना पीछेसे भी ठीक आगइथी जीसे आपको फीर भी यह ऋद्धि मीली है जैसे जैसे तुमारे कुटुम्बके परिणाम रहे थे वैसे वैसे दुःख भोगवना ही पडाथा। सेठजीका पूर्वभव श्रषण कर परिषदा थर थर कम्पने लग गह कि अहो कर्म! एक बारहा घंटे रत्न रखाथा जिस्का यह फल हुवा है इसपर सब लोकोने विचारपूर्वक निर्णय कर लिया कि किसीका गुप्त एक पैसा भी नही लेना चाहिये किसीका दीलको नही दुःखाना चाहिये इत्यादि सेठजीने कहा कि हे भगवान् वह ऋषभदास और उनोकी सेठाणी कहा होगी में जा के उनसे मेरा अपराध क्षमावु । भगवान्ने फरमाया कि इस बख्त वह दोनो महा विदह क्षेत्रमे केवली है तुमको मोक्षमे मीलेगा। सेठजीने कहा कि क्यो भगवान् ! मेरे जैसे पापीयोका भी मोक्ष होगा! सूरीनीने फरमाया कि हां सेठ तुम भव्य है यह सुनते ही सेठजी सूरीजीको बन्दना नमस्कार कर अपने घरपर जाके अपने पुत्रोको यथायोग्य गृह भार सोप आप सेठ सेठाणी नूरीजीके पास दीक्षा हा व्यारो पुत्र भोर पुत्रोंकि ओरतो प्रावकधर्म प्रहन कीया बाद सरीजी विहार कीया महिपालादि अर्थ काम धर्म वर्ग को साधन करते हुवे सात क्षेत्र में द्रव्य खरचके अनेक सुकृत कार्य करते हुषे पास्यावासको सफल कर रहे थे। रत्नसुन्दरीके एक पुत्र हुषा जिसका नाम रत्नपाल रखाथा. एकदा नांनाणे गया था वहां राना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034945
Book TitleMahasati Sur Sundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1924
Total Pages62
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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