SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५२ ) संतोष कीया यह बात थी रात्री मे ६ बजे कि जिनदास वडा खुशी हो अपने च्यारे पुत्रों को कहा कि हे पुत्रो तुम दिनभर सिरपची कर क्या कमाई करते हो मेने एक घंटाभरमे क्रोड रूपैये के पांच रत्न कमा लिया है यह सुन सेठाणी तथा चारो पुत्र खुश हुवे बजारसे घृत सकर लाके खुशीका हलवा बनाया. भांग गोटी अत्र तेल फूल्लेल लाये अब सब भोजन करनेको बेठे उसमें छोटे लडके कि बहुने कहाकि अहो अधर्म ! दुसरेके दीलमें दाहा लगाके आप हलवेका भोजन करना यह कैसी निर्दय निष्ठुरता इसवातको तीनो पुत्रोकि बहुने कहाकि हा विनणी! तुम कहते हो वह सत्य है परन्तु क्या करे इस घरमे रहना है वास्ते भोजन करनाही पडता है शेष सेठ सेठाणी और च्यार पुत्रो खुशी के साथ माल मुशालेको उडाये. रात्रीभर च्यार बहुओको उस भोजन कर नेका पश्चाताप रहा और छे जीवोको खुशी रही अब शुभे सेठजी उठके सामायिक प्रतिक्रमण कर आत्मनिंदा करते थे इतनेमें छोटे लडकेकि बहुने सुनके तीनों सेठाणीयों से कहने लगी कि आप भी इधर पधारके सेठजीकी आत्मनिंदा सुनीये तो सही बुगलेवालाध्यान यह शब्द सेठजीने सुनके अपने हृदयसे विचार कियाकि अहो! लोभ मेरेसे कैसा दुष्कृत्य कराया है जोकि रीषभदास मेरे विश्वासपर यहां रत्न रख गयाथा मेने उसके गले पर छुरी चलादि धिक्कार पडो मुजको मेरेको कीतना जीना है क्या यह लडका मेरे साथ रत्न दे देगा ? अहो मेने वडा भारी अकृत्य कीया है उसी बखत अपने लडकेको बुलांके कहा कि तुम जाबो रोषभदासको बुला लाओ वह लडका शेषभदासके पास गया रोषभदासने कहा कि भाइ मेरे पास तो जो मेरा जीवन था वह सेठजीने मार लिया है अब और क्या कहेगा सेठाणीने कहाकि सेठ साहिब कीसी के साथ अनुचित्त शब्द नही बोलना चाहिये अगर सेठजी बुलाते है तो आप जाइये बस रोषभदास सेठजीके पास गया उसे देखते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034945
Book TitleMahasati Sur Sundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1924
Total Pages62
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy