SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 193 पत्रोंको नहीं लेकर मुझे लिखियो । तो तेईस मेरे पत्रे अभि खोये हुए हैं। और मैं इस काम के वास्ते पोलीस कहुंगा और इससे सहायता पुच्छंगा। इस कारण से । कि मैं सोचता हुँ । कि मेरे पत्रे किसू कारण से चोर गये । मैं अभि आपको सब पत्रे रजिसटरड भेजदूंगा। अमि ये पत्र लिखकर एक मेरे लेकचर का कोपी मीला। क्या आप और लगभग तीस कोपी मुझे भेजदे साकते हो? मैं उको मेरे देशे भेजदिया चाहता हुँ । ___ मैं अभि "The Idea of God in Jainism" लिखता हुं। और मैं भरोसा करता हुं। कि मैं एक महीने में दोनों 'एस्से' तयार करूंगा और आपको भेजदूंगा। यद्यपि मैं बहुत अधुनि और निणिद्रता और शिरोवेदना उठाता हुं। श्री आचार्य महाराजकी तबीयत कैसी है ? प्रोफेसर कापडीया ने मुझे कहा । कि श्री आचार्य महाराज बिमार है । और आप क्या करते हो ? मैं श्री आचार्य महाराजको और आपको और सब साधुवोंको नमसकरना हुँ। परटोल्ड 56,58, Walkeshwar Road, Malabar Hill, Bombay. त० आश्विन शुद्ध १५ वीर० सं० २४४७. श्रीयुत उपाध्याय महाराज । महाशय । मेरे ऐसा लमबा वक्त नहीं लिखनेका क्षमा किजियो। मेरे पास बहुत काम है। तो सोमवार से शुक्रवार तक सरकार का काम है। दूसरे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034934
Book TitleLetters to Vijayendrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Sarak
PublisherYashodharma Mandir
Publication Year1960
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy