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________________ 194 दिनों में मैं या मेरा विद्येका काम करता हुं या उपरदेशे में कुछ देखने और सोचने के वास्ते जाता हुं। अभि में पांच दिन नानदुरवार में भीललोग देखने वास्ते हुआ। दिवाली के वक्त में मैं पन्धरपुर को जाउंगा। मैं और "Selected Essays on Jainism" के लिये एक या दो निबन्ध लिखा चाहता हूं। मैं न० ४ और ६ विषय पसन्द करता हूं। मैंने और मेरे देशे को विद्यालयके सभेका और प्रोफ० सुबटी (Znbaty) प्रोफ० लेस्नी ( Lesny) । और डोकटर स्त्रक (Straka) अदि को इसके लिये लिखा । परन्तु जनुआरी के अंत तक थोडा थोडा वक्त है। और ऐसे थोडे वक्त में एक अच्छा निबन्ध लिखना बहुत कठिन है । और दो या तीन महीना देना जरूरत है। श्री आचार्य महाराज बीमार होना समझने के लिये मैं बहुत उदास हुआ। उसकी तबीयत अभि कैसी है। मैं अभि अच्छी होनेका भरोसा करता हुं । और आपकी तबीयत कैसी है । "प्रूफ्स" कापडीये से मिले । मैंने जी० के० नरिमाण साहब को ठीक करने के लिये दिये । और मैं उन को काल निर्णय सागर प्रेस को वापस भेजदूंगा। मैं श्री आचार्य महाराजको और आपको और सब साधुवों को नमसकरता हूं। और धुलिये में श्रावकों को मुझे सलाम बोलियो। परटोल्ड www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034934
Book TitleLetters to Vijayendrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Sarak
PublisherYashodharma Mandir
Publication Year1960
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size37 MB
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