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________________ 192 अभि मेरे पास आपसे और एक प्रार्थना है । क्या आप मुझे मेरे लेक्चर के मराथी उलथे के दस कोपीयान भेज दे साकते हैं ? मेरे देश में कई मनुष्य मराथी बोल सीककर में उधर इनको भेजा चाहता हूं | क्या उवासगादसओ हस्त लिखिता पुस्तक अभि मिलता नहीं है ? और दक्षिणी देश में कनकसबाईके पुस्तक के लिये कुछ जवाब नहीं मीलता है ? और जिस पुस्तक के आप मुझ से भाषान्तर किया चाहे उस लिये क्या हैं ? अभि मेरे पास बहुत सरकरका काम है । परन्तु मैं हरदिन चार वा पांच घंटे मेरा विद्येका का काम करता हुं । और अभि पांच दिन को मैं वेरूल में (Ellora) गुफे देखने के वास्ते हुआ । कैसा आचार्य महाराजका और आपका तबियत है । जो श्रावके धूलिये में मुझको मालूम । उनको मुझको सलाम बोलियो । श्री आचार्य महाराजको आपको और सब साधुवोंको मैं नमसकरता हुँ । मेरा नाम देवनागरि से लिखना है : ओ (टकर) पेरटोल्ड, पी. एच. डी. मैं एम. ए. नहीं हूँ और ये 'डॉक्टर' का संकेत है इसलिए और 'डी. "पी. एच' हूँ । डॉक्टर परटोल्ड (५) 56/58, Walkeshwar Road, Malabar Hill, Bombay. 25th-I-1922 श्रीयुत महाशय । 1 आपका पत्र और प्रसपेकट मीले । मैंने आपको दो पत्रे भावनगर और दो पत्रे इन्दौर लिखकर भेजदिये । लेकिं मुझे कुछ जवाब नहिं मीला । मैंने उन पत्रों में आपको दो तस्वीर भेजदिये और बहुत प्रश्ने आपसे पुच्छे । इन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034934
Book TitleLetters to Vijayendrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Sarak
PublisherYashodharma Mandir
Publication Year1960
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size37 MB
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