________________
पूर्ण खेद है। यदि हो सका तो हम इस इतिहास की अभिवर्द्धित दूसरी आवृत्ति में इस त्रुटिको भी पूर्ण करेंगे।
सिद्धगिरि पर दादा आदिनाथ के दर्शन करने से दर्शकों को जो आनन्द उत्पन्न होता है वही यहाँ की इन तीन जिनप्रतिमाओं के दर्शन से होता है और मालूम पड़ता है कि हम इन प्रतिमाओं के सम्मुख क्या बैठे हैं ? मानो ! सिद्धगिरिराज के ही सम्मुख बैठे हुए हैं। ये प्रतिमाएँ सर्वावयव पूर्ग, और छः छः फुट बड़ी हैं। इनकी प्रतिष्ठा विक्रम सं० ११४३ में बृहद्गच्छीय आचार्य श्रीविजयसिंह मूरिजीने की है जो अजितदेवाचार्य के अन्तेवासी थे।।
हम सब जैनमहानुभावों से निवेदन करते हैं कि वे एक मर्तबा इस प्रभावशाली तीर्थ की भी यात्रा करके अवश्य लाभ प्राप्त करें । गोडवाड (मारवाड) की पंचतीर्थी की यात्रा करनेवाले यात्री इस तीर्थ की यात्रा का लाभ बड़ी आसानी से ले सकते हैं। क्योंकि यह तीर्थ उनके बीच में आनेवाले एरनपुरा स्टेशन से ६ कोश पश्चिम में है। स्टेशन पर सवारी
१-विक्रम सं०६६४ में श्रीनेमिचन्द्राचार्य के शिष्य श्री उद्योतनमूरिजीने अर्बुदाचल की तलेटो पर आये हुए 'टेली' गाँव के पास वटवृक्ष के नीचे सर्वदेव को प्राचार्य पद दिया। अतएव श्रीसर्वदेवसरिजीने अपने गच्छ का नाम बृहद्गच्छ ( वडगच्छ) कायम किया।
गच्छमतप्रबंध, पृष्ट २१
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com