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(१३ ) के खंडेहर पड़े हैं, उन्हों के और कतिपय मन्दिर-देवलों के देखने से अनुमान किया जा सकता है कि किसी समय यह दस कोश के घेरे में वसा होगा। इसका पश्चिम-दक्षिण भाग झारोली (मारवाड़) के पहाड़ से दबा हुआ है
और शेष तीन भाग खुले हुए हैं। _इसकी प्राचीनता दिखलानेवाले स्थानों में, सब से प्राचीन महावीरप्रभु का सौधशिखरी जिन-मन्दिर है जो धोलागढ-पहाडी, या कोरटा गाँव से आधा माइल दक्षिण में नहरवा नामक मैदान में स्थित है। श्रीवीरनिर्वाण से ७० वर्ष के बाद इसी भव्य मंदिर में वीरप्रभु की प्रतिमा की प्रतिष्ठा हुई है । इस मन्दिर के चोफेर पक्का कोट बना हुआ है और उसके भीतरी दैलान में भूमिगृह-भोयरा-तलघर मजबूत बंधा हुआ है, जो प्राचीन है। कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिकाटीका के स्थविरावली अधिकार में लिखा है कि
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