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(१५) इस बात की खोज करने की आवश्यता है कि दिगम्बर जैनियों न उपर्युक्त चार प्रत्यक वुद्ध माने हैं या नहीं, तथा वौद्धों और श्वेताम्बरों, दोनों ने उन्हे ठीक उसी प्रकार कब और क्यों मान लिये।
__ करकण्डु की इस अपूर्व मानता परंस मुझे उनके समय के सम्बंध में कुछ अनुमान होता है । बौद्ध उन्हे महत्मा बुद्ध से पूर्व हुए स्वीकार करते हैं, और जैन उन्ह भगवान पार्श्वनाथ के तीर्थ में अर्थात् महावीर स्वामी से पूर्व हुए मानते हैं। जिस महात्मा के सम्बध में दो तीन भिन्न भिन्न धार्मिक सम्प्रदायों में समान आस्था हो उसे यह समझना आवश्यक है कि वह उन साम्प्रदायिक भेदों के उत्पन्न होने से पूर्व ही हुए होंगे । अतः करकण्ड महाराज को हम यदि पार्श्वनाथ के तीर्थ में अर्थात लगभग ईस्वी पूर्व ८०० से ५०० के बीच हुए मान लें तो अयुक्तिसंगत न होगा।
तेरापुर और वहां के लयन [ गुफाएँ] ग्रंथ की चौथी और पांचवीं सन्धियों में करकण्डु महाराज के तेरापुर पहुंचन, वहां की पहाड़ी में एक गुफा और उसमें विराजमान पार्श्वनाथ भगवान् का दर्शन करने, गुफा में एक जलवाहिनी प्रकट कराने, तथा वहां तीन और गुफाओं के वनवाने का विशद वर्णन है। यदि कनकामर का वर्णन सच है तो ये गुफाय आज भी किसी न किसी रूप में वर्तमान होना चाहिये ? पर उनका पता लगाने से पूर्व तेरापुर कहां था इसका निश्चय होना चाहिये । करकंडु अंगदेश की चम्पापुरी से चोल, चेरादि दक्षिण के राज्यों की तरफ जा रहे थे तभी उन्हे तेरापुर मिला था। अतः दक्षिणापथ में ही उसे होना चाहिये । खोज करने से हैदरावाद राज्य के उस्मानाबाद जिले में एक 'तेर' नामका स्थान मिला है। यह उस्मानाबाद शहर. जिसका अभी कुछ ही पूर्व धाराशिव नाम था, से वारह मील उत्तर पूर्व की ओर है। वहां अब चौदह वाडियां (छोटे छोटे ग्राम) वसे हुए हैं। इसी 'तेर' को डाक्टर फ्लीट ने इतिहास प्रसिद्ध, प्राचीन तगरपुर ठहराया है। मेरा अनुमान है कि यही कनकामर कवि का तेरापुर है । कवि के दिये हुए वर्णन और इस स्थान की परिस्थिति के सूक्ष्म मिलान से इस अनुमान में कोई सन्देह नहीं रहता । कनकामर के अनुसार करकण्ड तेरापुर से दक्षिण की
ओर जाकर ठहरे थे। वहां से कुछ दूर पश्चिम की ओर एक पहाड़ी के चढाव पर उन्हे वह गुफा मिली । वहीं एक तालाव के होने का भी उल्लेख है। आज भी ये सब वाते उसी प्रकार विद्यमान हैं। तेर के पास पहाड़ी भी है । उसकी वाजू में गुफायें भी है । एक तालाव भी मौजूद है। इस तालाव में कमल भी होते थे जो कुछ वर्षों से नष्ट होगये हैं । अव वहां की गुफाओं का वर्णन देखिये । करकंडू ने जिस गुफा के दर्शन किये उसे कवि ने 'सहसखंभलयन' कहा है। कविता में सहस्त्र का अर्थ साधारणतः अनेक, बहुत से जिनकी संख्या विना सावधानी से गिने न जानी जा सके, लेना चाहिये । वर्तमान प्रधान गुफा बड़ी विशाल है । इसका वरामदा
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