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________________ (१६) ७८ फुट लम्बा और १०१ फुट चौड़ा है जिसमें पुराने ७-८ खंभे रहे होंगे । एक वाजू में कुण्ड वाला कमरा है जिसमें दो खंभे हैं । पांच दरवाजे भीतर शाला में जाने के लिये हैं। यह शाला ८५ फुट लम्बी और लगभग उतनी ही चौड़ी चौकोर आकार की है । यहां ३२ खंभे दोहरे चौकोर आकार में हैं, १२ भीतरी चौकोर में और २० बाहरी। इस बृहत् शाला की प्रत्येक बाजू में आठ आठ कमरे हैं जो प्रत्येक ९ फुट चौकोर है । फिर गर्भगृह कोई २० फुट लम्बा और १५ फुट चौड़ा है । यहां पांच फुट की पार्श्वनाथ भगवान् की काले पापाण की पद्मासन मूर्ति विराजमान है । इस गुफा को यदि कवि सहसखंभ कहे तो कोई बड़े आश्चर्य की वात नहीं है। कवि ने गुफा के भीतर एक जलवाहिनी प्रकट होने का वर्णन किया है । जव करकण्ड ने गुफा की मूर्ति के दर्शन किये तो सिंहासन पर उन्हे एक गांठ दिखी । उस गांठ को उनने तुड़वाई और वहां से एक भारी जल का फब्बारा निकल पड़ा। गुफा के भीतर अब भी जलकुंड है। जिस कमरे में जलकुंड है वह १७ फुट लम्बा और १२ फुट चौड़ा है। इसी कमरे में एक सप्तफणी नाग सहित पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा है । दो पाषाण और भी हैं जिनपर भी जिनप्रतिमाएँ खुदी हैं। कमरे के भूतल में दो छिद्र भी हैं जिनका सम्बन्ध कुंड से है । जान पड़ता है, करकण्डू के समय में यही गर्भगृह था। वर्तमान गर्भगृह में जो मूर्ति है सम्भवतः वही करकण्डु को पहाड़ी के ऊपर वामी में गड़ी हुई मिली थी। बड़ी शाला की बाजू के एक कमरे में भी जमीन में एक छिद्र है जो सदैव पानी से भरा रहता है । इससे कनकामर द्वारा वर्णित जलवाहिनी के प्रकट होने की बात भी सत्य प्रतीत होती है। कवि ने कहा है कि जलवाहिनी प्रकट कराने से पूर्व करकंडु ने एक लयन चिनवाई और फिर विद्याधर के कहने से दो और लयन बनवाई। मैने लयन चिनवाने का तात्पर्य मूल के प्रसङ्गानसार 'पुरानी लयन की मरम्मत करवाई' ऐसा लिया है। किन्तु यह भी सम्भव है कि जलवाहिनी से समस्त गुफा के नष्ट होजाने के भय से करकंडु ने पहले भी एक नई ही गुफा निर्माण कराई हो और दो फिर पश्चात् । इस प्रकार पुरानी गुफा सहित चार गुफाएँ हुई। ये ही चार गुफाएँ पहाड़ी के इस भाग में आजतक विद्यमान है । यदि करकंडु द्वारा बनवाई दो ही नई गुफाई मानी जावे तो तीसरी गुफा किसी ने और पीछे बनवाई होगी। इन सब गुफाओं में जहां प्रतिमाएँ हैं वहां अधिकतः पार्श्वनाथ भगवान् की ही है, महावीर भगवान् की तो एक भी प्रतिमा नहीं है । इससे भी इस संस्थान के पार्श्वनाथ भगवान् के तीर्थ में निर्माण किये जाने की बात पुष्ट होती है। इस प्रकार सिद्ध होता है कि कनकामर द्वारा उल्लिखित तेरापुर यही 'तेर' है तथा करकण्डु की निर्माण कराई हुई गुफाएँ वर्तमान गुफाएँ ही हैं। इनके समीप जो धाराशिव नाम का नगर वसा है, सम्भवतः उसका नाम इसी जलधारा के कारण पड़ा। करकण्डु ने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034918
Book TitleKarkanda Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKankamar Muni
PublisherKaranja Jain Publication
Publication Year1934
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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