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________________ ( १३ ) उस पर प्रसन्नता बढ गई । यह बात मंत्री को सहन न हुई। उसने रानी को उभाड़ा और उस ब्राह्मण के प्राण लेने की दृष्टि से कहीं शेरनी का दूध और कहीं बोलता हुआ पानी लाने के लिये उसे भिजवाया | पर राक्षसी की सहायता से ब्राह्मण ने सब कुछ ला दिलाया। निदान राजा को मंत्री का कपटजाल ज्ञात होगया । उसने उसे मंत्री पद से निकाल दिया और उस ब्राह्मण को मंत्री बनाया । अन्त में उस ब्राह्मण ने वैराग्य धारण कर लिया, और अगले भव में वह अर्जुन हुआ । इस प्रकार उपवास के प्रभाव से सुमित्रा अर्जुन होगई । इस कथा को कवि ने कोई परियों की कहानियों में से लिया है । यही कथा और परिवर्धित रूप में भावचन्द्र सूरि के शान्तिनाथ चरित नें भी पाई जाती है । ये नौ अवान्तर कथायें करकण्डवरित के लगभग चौथाई भाग में आई हैं । कथा के नायक इस ग्रंथ में यह बतलाया गया है कि पञ्च-कल्याण-विधान के प्रभाव से किस प्रकार एक ग्वाला अगले भव में राज्य-सुख को पाकर मोक्षगामी हुआ । इस ग्रंथ के कथानायक का स्थान बड़ा अद्वितीय है । वे दिगम्बर सम्प्रदाय में ही नही, श्वेताम्बर सम्प्रदाय में भी माने गये हैं । यही नही, किन्तु बौद्धों ने भी उन्हे अपना एक महात्मा माना है । वौद्धों के जातक साहित्य में वे करण्ड्र या करकंडू के नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्हें वे प्रत्येकबुद्ध मानते हैं । प्रत्येकयुद्ध उन्हे कहते हैं जो स्वयं केवलज्ञान प्राप्त कर लें, किन्तु विना धर्मोपदेश किये ही, शरीरान्त कर, मोक्ष चले जायें। इस प्रकार के चार प्रत्येकबुद्ध बौद्धों ने माने हैं, करकंडू, नग्गई, नमि और दुर्मुख, और इन चारों की कथाएँ पाली साहित्य में पाई जाती हैं । किन्तु बौद्धों की करकण्डू- कथा और वर्तमान कथा में उनके जन्मस्थान व मातापिता के नाम तथा स्वयंवुद्धत्व के अतिरिक्त और कोई साम्य नही है । श्वेताम्बर सम्प्रदाय में भी वे चारों प्रत्येकयुद्ध माने गये हैं और उनकी कथाओं पर बहुतसा साहित्य निर्माण हुआ है। उनका सब से पुराना उल्लेख उत्तराध्ययन सूत्र में है, और कथाएँ उसकी टीकाओं में पाई जाती हैं। इन कथाओं से वर्तमान ग्रंथ की मूल कथा का बहुत कुछ साम्य है, केवल उन कथाओं में करकण्डू की दक्षिण विजययात्रा का हाल नही पाया जाता। छोटी मोटी बातों में कई जगह भेद भी है । उदाहरणार्थ, जब हाथी राजा दधिवाहन और रानी पद्मावती को लिये भागा जा रहा था तब, देवेन्द्र कृत श्वेताम्बर कथा के अनुसार, राजारानी दोनो ने यह निश्चय किया था कि वे एक वृक्ष की डाली पकड़कर बच जायेंगे । किन्तु जब अवसर आया तब राजा तो डाल पकड़ सके, पर रानी स्वभावतः इस काम में फुर्ती न दिखा सकी, और हाथी की पीठ पर ही रह गई । किन्तु हमारे ग्रंथ में कहा गया है कि रानी के समझाने पर राजा अपनी गर्भवती प्रिय स्त्री को भाग्य के भरोसे छोड़कर केवल अपने प्राण बचाने पर राजी होगया । यह सच्चे धीरोदत्त नायक का लक्षण नहीं है । मेरा ख्याल है कि कनकामर ने अपना ग्रंथ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034918
Book TitleKarkanda Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKankamar Muni
PublisherKaranja Jain Publication
Publication Year1934
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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