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________________ (१२) न्याल उसे लेकर उजैनी में आया। नगर के मार्ग में एक और बात देखने में आई । एक वेश्या एक सेठ को पकड़े पकड़े फिरती थी और कहती थी कि मैंने तुम्हारे जेठे लड़के को स्वप्न में अपनी लड़की के साथ देखा है, इस लिये तुम मुझे धन दो । सेठ वेचारा बड़ी विपत्ति में पड़ा था। सब लोग तमाशा देख रहे थे, पर किसी कि कुछ अक्ल काम नहीं करती थी कि क्या किया जावे । निदान सुए ने इस झगड़े का निपटारा किया। उसने सेठ से धन मंगाया । और एक दर्पण में उसकी छाया डालकर कुट्टिनी से कहा, ले वहिन, तेरा धन लेले! कुहिनी ने कहा, रे नगोड़े सुए ! कहीं दर्पण का प्रतिबिम्ब भी लिया जा सकता है ? सुए ने तुरंत उत्तर दिया, कहीं स्वप्न की बात प्रत्यक्ष हुई है ? इस प्रकार सेठ को उस झंझट से छुड़ाकर यह सुआ राज दरबार में पहुंचा । उसने पांव उठाकर राजा को आशीर्वाद दिया और अपनी यह कपटकहानी सुनाई कि हम पांच सो सुए एक सेमर के झाड़ में रहते थे। एक बार एक भीलों के समूह ने आकर हम सब को जाल में फंसा लिया। तब मैने अपने सब साथियों को यह सलाह दी कि मृतवत् होकर पड़ जावो । उनके ऐसाही करने पर भीलों ने उन्हे मरा जानकर अपना फंदा हटा लिया और सब सए उड़ गये। मैं उड़कर एक तपस्वियों के वाड़े में पहुंचा और वहां मैने सब शास्त्रपुराण सीखे । इस कथा को पढकर भी वाण-कृत कादम्बरी के सुए का ध्यान आता है, जो ऐसा ही विद्वान् था और जिसे एक चाण्डाल कन्या, उजैनी में ही, राजा शूद्रक के दरबार में लाई थी। वही सेमर का झाड़, वही भीलों का जत्था, वहीं सुओं पर आपत्ति और इस लुए का तापसों के बाड़े में पहुंचने की वार्ता, दोनों में विद्यमान है। यह कथा भी कथासरित्सागर में है और वृहत्कथा में भी रही होगी। किन्तु हमारी कथा में सुए के बचने का उपाय भिन्न है। इस उपाय में वह हितोपदेश की काक और हरिण वाली कहानी से समानता रखती है । लिखते समय सम्भवतः कवि के ध्यान में उक्त दोनों कथाओं का सम्मिश्रण होगया है। अन्तिम अवान्तर कथा मुनिराज ने करकंड की माता पद्मावती को यह बतलाने के लिये सुनाई है कि भवांतर में स्त्रीलिंग का परिवर्तन भी हो सकता है। [१०, १८-२२] उज्जैन के राजा की सुमित्रा नाम की पुत्री थी। उस ने उपवास के फल से मर कर एक ब्राह्मण के घर में लड़के का जन्म पाया, किन्तु पिता की मृत्यु उसके गर्भकाल में ही होगई । विधवा स्त्रियों के छोटे लड़के अक्सर बड़े नटखटी हो जाते हैं। ऐसा यह भी हुआ । एक चार अपनी माता से लड़कर वह घर से भाग गया और वन में एक पुरानी मढिया में गत-बसेरा किया। वहां रात्रि को विद्याधरियाँ आई जिनमें से एक का चीर उसने उड़ा दिया । उसे लेकर वह घर आया। माता ने उसे एक सेठ को बेच दिया और सेठ ने उसे गजा को भेंट किया। राजा को उसके जोड़ मिलाने की अभिलाषा हुई और अन्त में उसी ब्राह्मण पुत्र को यह काम सौंपा गया। इस बार वह एक डंडा लेकर वन में गया और एक राक्षसी को वश में कर लाया । उससे उसके जोड़ का कपडा लेकर उसने राजा को दिया । राजा की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034918
Book TitleKarkanda Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKankamar Muni
PublisherKaranja Jain Publication
Publication Year1934
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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