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बीच डाल दिया । उसके साहस से प्रसन्न होकर वे दोनो भी मनुष्य का रूप धारण कर उसके साथ होगये। एक राजा ने उन्हे देखा और वह उस स्त्री के रूप पर मोहित हो गया। उसने युवक को एक कुए में ढकेल दिया, और उस स्त्री से प्रेम करना चाहा । इतने में ही उसे एक सर्प ने डस लिया और वह मर गया । स्त्री ने उस युवक को कुए से निकाला और पश्चात् उसका मृत राजा के स्थान पर राज्याभिषेक होगया । सुदर्शना देवी शकुन का यह फल देकर चली गई ।
आठवीं अवान्तर कथा अरिदमन की है, जिसे पद्मावती देवी ने करकंड के समुद्र में विद्याधरी द्वारा हरण किये जाने के शोक से व्याकुल रतिवेगा को सुनाया था (८, १-६६ ) । अरिदमन उज्जैन का राजा था। एक विद्याधर ने सुआ का रूप धरकर अपने को एक ग्वाल द्वारा उस राजा के हाथ बिकवा दिया । सुआ ने राजा को बताया कि उसके मंत्री के पास एक बड़ा सुंदर और प्रतापी घोडा है । राजा ने मंत्री ले इसे प्राप्त किया और सुआ सहित उसपर सवार हुआ । एक चाबुक मारी कि घोड़ा उड़कर समुद्रपार एक द्वीप पर जा पहुंचा। वहां राजा ने बहुतसी कन्याओं को जलक्रीडा करते हुए देखा और उनमें प्रधान रत्नलेखा से उसने विवाह कर लिया । एक दिन रत्नलेखा ने कहा कि मैं आपका पितृगृह देखना चाहती हूं। तब राजा ने एक नौका निर्माण कराई और राजा-रानी, सुआ और घोड़ा सहित, उस पर बैठ कर चल दिये । विपरीत वायु के कारण नाव एक उजाड़ द्वीप पर जा पहुंची। वहां उन्हे रात बसेरा करना पड़ा। रात्रि को ही नाव को कोई चुरा ले गया। तब सुए की सलाह से राजा ने लकड़ी काट और उन्हे बांधकर एक डोंगी बनाई और वे चारों उसपर बैठकर चले । समुद्र की लहरों से डौंगी के बन्धन टूट गये और वे चारों बिछुड़ गये । सुआ उड़ गय घोड़ा कहीं गया, राजा कोकन पहुंचे और रानी खंबायत बन्दर पर पहुंची। वहां उसे एक कुट्टिनी के यहां आश्रय मिला । उसने यह प्रण किया कि जो कोई मुझे सार- पांसे खेलने में हरा देगा उससे ही मैं प्रेम करूंगी। किन्तु उससे कोई भी पुरुष नही जीत पाया । एक दिन वह सुआ उड़कर उसके घर आगया और उनकी पहिचान हो गई । उसकी द्यूतक्रीडा की कीर्ति चारों ओर फैल गई । कोकन में अरिदमन ने भी समाचार सुने । वे आये । खेल हुआ और उन्होने रत्नलेखा को हरा दिया । रत्नलेखा बहुत व्याकुल हुई, किन्तु इसी क्षण उनकी परस्पर पहचान हो गई और वे मिलकर बहुत खुशी हुए। एक दिन एक ठक्क वहां घोड़े बेचने लाया | उनमें अरिदमन ने अपना घोड़ा पहचान कर खरीद लिया । इस प्रकार वे सब बिछुड़े प्रेमी एक बार फिर मिलकर अपने घर आनन्द से आगये !
इस कथा के प्रारम्भ में जो सुए की कहानी है वह एक प्रकार से स्वतंत्र ही है ( ८, ३-८ ) । एक विद्याधर सुए का रूप धर कर उज्जैन के पास पर्वत पर रहता था । उसने राजा के मंत्री की घोड़ी को पर्वतपर चरते व उसे गर्भवती होती हुई देखा था । एक दिन उसने एक ग्वाल से कहा कि मुझे ले बल और पांच सौ सुवर्ण मुद्राओं में राजा को बेच दे ।
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