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( ६ ) उसे रोकने के लिये ही वह गांठ दी गई है । यह सुनकर करकंड को उस जलवाहिनी के दर्शन करने का कौतुक उत्पन्न हुआ और उस शिल्पकार के बहुत रोकने पर भी उन्होने उस गांठ को तुड़वा डाला। गांठ के टूटते ही वहां एक भयंकर जलप्रवाह निकल पड़ा जिसे रोकना असम्भव हो गया। सारी गुफा जल से भर गई । यह देखकर करकंड को अपने किये पर पश्चात्ताप होने लगा । निदान एक विद्याधर ने आकर उनका सम्बोधन किया, उस प्रवाह को रोकने का वचन दिया तथा उस गुफा के बनने का इतिहास भी कह सुनाया ।
विद्याधर ने कहा कि एक समय दक्षिण विजयार्ध के रथनूपुर नगर में नील और महानील नाम के दो विद्याधर भाई राज्य करते थे, किन्तु शत्रु से परास्त होकर वे वहां से भाग निकले और तेरापुर में आकर रहे। धीरे धीरे उन्होने वहां राज्य स्थापित कर लिया। एक मुनि के उपदेश से उन्होंने जैनधर्म ग्रहण कर लिया और वह गुफा मंदिर बनवाया । इसी समय दूसरे दो विद्याधर भ्राता लंका की तरफ यात्रा को जा रहे थे । मलयदेश के पूदी पर्वत पर उन्होने एक रावण के वंशज द्वारा बनवाये हुए जिनमंदिर में एक सुन्दर जिनमूर्ति देखी। उन्होने विचार किया कि ऐसी ही मूर्ति हम अपने यहां बनवावेंगे, इस हेतु वे उस मूर्ति को उठा कर ले चले। तेरापुर पहुंचने पर वे उस मूर्ति को पहाड़ी पर रख कर जिन मंदिर की वन्दना को गये। लौटकर आने पर जब वे उस मूर्ति को उठाने लगे तब वह नहीं उठी । निदान एक मुनि के उपदेश से उन्होने उसे वहीं छोड़ा और वैराग्य धारण कर लिया। इनमें से एक भाई तो शुद्ध तपस्या करके स्वर्ग को गया और दूसरा मायाचारी के कारण मर कर हाथी हुआ । स्वर्गवासी भाई अवधिज्ञान से अपने भाई की दुर्गति को जान कर वहां आया और उसे जाति- स्मरण कराया जिसके कारण वह उस वामी की मूर्ति को पूजने लगा । ये समाचार सुनाकर विद्याधर ने करकण्डु को एक और गुफा बनवाने की सलाह दी । करकण्डु ने वहां दो गुफायें और वनवाई |
इसके पश्चात् एक बड़े दुःख की घटना हुई । एक विद्याधर, हाथी का रूप धर कर, आया और करकंड को भुलाकर मदनावली को हर ले गया । करकंडु शोक में बहुत ही विह्वल हुए, किन्तु एक पूर्व जन्म के संयोगी विद्याधर के समझाने, तथा पुनः संयोग का आश्वासन देने पर समाधान हुए और आगे बढे । वे सिंहल द्वीप पहुंचे और वहां की राजपुत्री रतिवेगा का पाणिग्रहण किया। उसके साथ जब वे जलमार्ग से लौट रहे थे तब एक भीमकाय मच्छ ने उनकी नौका पर धावा किया। उसे मारने के लिये वे शस्त्र लेकर और मल-गांठ बांध कर समुद्र में कूद पड़े । मच्छ को तो उन्होंने मार डाला, पर वे लौटकर नाव पर न आ सके | उन्हे एक विद्याधरपुत्री हर ले गई। रतिवेगा के शोक का पारावार न रहा। मंत्री झटपट बेड़े को किनारे पर लाया । रतिवेगा ने पूजापाठ प्रारम्भ किया जिससे पद्मावती देवी ने प्रकट होकर उसे आश्वासन दिया । रतिवेगा के दिन वहीं पर धर्म कर्म में बीतने लगे। उधर करकंडु को वह विद्याधरी अपने घर ले गई और अपने पिता की आशा
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