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________________ ( ५ ) करकंड पड़ गया । जब वह युवावस्था को प्राप्त हुआ तब एक दिन दन्तीपुर के राजा का परलोकवास हो गया । उसके कोई पुत्र नही था इससे राजमंत्रियों ने यह व्यवस्था की कि एक हाथी को एक भरा घड़ा दिया जावे, और उससे वह जिस व्यक्ति का अभिषेक कर दे वही राजा बना लिया जाय । इस विधान मे करकंड का भाग्य चमक उठा। किन्त उसे मातंग-पुत्र जानकर मंत्री और नगर-निवासी अपना राजा स्वीकार करने में हिचकिचाये। इसी समय उस मातंग को अपनी विद्याधर-ऋद्धि प्राप्त होगई और उसने सबका समाधान करके करकंड को राजा बनवा दिया । कुछ समय पश्चात ही उनका विवाह गिरिनगर की राजकुमारी मदनावली से होगया । एक वार उनके दरबार में चम्पा क राजा का दूत आया जिसने उनसे चम्पा नरेश का आधिपत्य स्वीकार करने की प्रेरणा की। इससे कर कण्डु को भारी क्रोध उत्पन्न हुआ। उन्होने तत्काल ही चम्पा पर चढाई कर दी । घोर युद्ध हुआ, अन्त में पद्मावती ने रणभूमि में उपस्थित होकर पितापुत्र का सम्मेलन करा दिया । धाडीवाहन पुत्ररत्न को पाकर बहुत हर्षित हुए। उन्होंने चम्पा का राजपाट भी उन्ह सौंप, वैराग्य धारण कर लिया। ____ अपने विस्तीर्ण राज्य को पूरा जमाकर करकंड ने एक बार मंत्री से पूछा 'हे मंत्री! क्या कोई ऐसा राजा है जो अभी भी मुझे मस्तक न नमाता हो ? मंत्री ने उत्तर दिया,महाराज! और तो सब राजे आपकी अधीनता स्वीकार करते हैं परंतु द्रविड देश के चोल, चेर और पाण्ड्य नरेश आपको नहीं मानते। राजा ने उनके पास दूत भेजा जिसको उन्होने यह कह कर विमुख कर दिया कि हम जिन भगवान को छोड़ और किसी को भी सिर नही युका सकते । यह उत्तर पाकर करकंडु ने यह प्रण किया कि यदि मैं इन राजाओं के मस्तकपर अपना पैर न रखू तो सब राजपाट का त्याग करदूं । उन्होने तुरंत ही उनपर चढाई कर दी। मार्ग में वे तेरापुर नगर में पहुंचे। वहां के राजा 'शिव ने आकर उनसे भेंट की और बताया कि वहां से पास ही एक पहाड़ी के चढाव पर एक गुफा है, तथा उसी पहाड़ी के ऊपर एक बड़ी भारी वामी है जिसकी पूजा प्रतिदिन एक हाथी किया करता है। यह सुनकर करकंडु शिवराजा के साथ उस पहाड़ी पर गये। उन्होने गुफा में श्री पार्श्वनाथ भगवान् का दर्शन किया और ऊपर चढकर उस वामी को भी देखा। उनके समक्ष ही हाथी ने आकर और पासही के एक तालाव से कमल तोड़कर उस वामी की पूजा की। करकंडु ने यह जानकर कि अवश्य वहां कोई देवमूर्ति होगी, उस वामी को खुदवाया। उनका अनुमान यथार्थ निकला। वहां पार्श्वनाथ भगवान् की मूर्ति निकली जिसे वे बड़ी भक्ति से उसी गुफा में ले आये। इस बार करकंडु ने पुरानी प्रतिमा का अच्छी तरह अवलोकन किया। सिंहासन पर उन्हे एक गांठ सी दिखी जो शोभा को विगाड़ रही थी। एक पुराने शिल्पकार से पूछने पर उसने कहा कि जब वह गुफा बनाई गई थी तय वहां एक जलवाहिनी निकल पड़ी थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034918
Book TitleKarkanda Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKankamar Muni
PublisherKaranja Jain Publication
Publication Year1934
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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