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________________ पर दृष्टि डालने से इस ग्रंथ के बनने का समय सन् १०६.५ ईस्वी के लगभग अनुमान किया जा सकता है । अभी उक्त शिलालेखा की और भी पूरी पूरी जांच होने की, तथा उनमें निर्दिष्ट बातों का पूरा पूरा सामञ्जस्य बैठाने की आवश्यकता है। किन्तु अन्य प्रमाणों के अभाव में हम ग्रंथकर्ता को इन्ही राजाओं के समकालीन मान ले तो हानि नही। इस साम. अस्य के अनुसार काव्य की रचना के स्थान 'आसाइय' नगरी की खोज बुन्देलखण्ड प्रान्त के भीतर की जाने की आवश्यकता है। ग्रन्थ का विषय इस ग्रंथ में करकण्डु (अपभ्रंश-करकण्ड) महाराज का चरित्र दश संधियों में वर्णन किया गया है । संक्षेप में यह कथा इस प्रकार है। अंगदेश की चम्पापुरी में धाडीवाहन राजा राज्य करते थे। एकवार वे कुसुमपुर को गये और वहां पद्मावती नाम की एक युवती को देखकर उसपर मोहित होगये । युवती का संरक्षक एक माली था जिससे बातचीत करने आदि से पता लगा कि वह युवती यथार्थ में कौशाम्बी के राजा वसुपाल की पुत्री थी। जन्म-समय के अपशकुन के कारण पिता ने उसे जमना नदी में बहा दिया था । राजपुत्री जानकर धाडीवाहन ने उसका पाणिग्रहण कर लिया और उसे चम्पापुरी ले आये । कुछ काल पश्चात् वह गर्भवती हुई और उसे यह दोहला उत्पन्न हुआ कि मन्द मन्द बरसात में, मैं नररूप धारणकरके, अपने पति के साथ, एक हाथी पर सवार होकर, नगर का परि भ्रमण कम् । ऐसा ही प्रबन्ध किया गया। किन्तु दुष्ट हाथी राजारानी को लेकर जंगल की ओर भाग निकला। रानी ने समझा बुझा कर राजा को एक वृक्ष की डाली पकड कर अपने प्राण बचाने पर राजी कर लिया और आप उस हाथी पर सवार रहकर जंगल में पहुंचीं। वह हाथी एक जलाशय में घुसा। उसी समय रानी ने कृद कर वन में प्रवेश किया। उनके प्रवेश से वह सूखा हुआ वन हरा भरा होगया। इस खबर को सुन कर वनमाली वहां आया और रानी को वहिन मान कर अपने घर लिवा ले गया । कुछ दिनों के बाद ही मालिन को पद्मावती के रूप पर ईर्ष्या उत्पन्न हो गई और किसी बहाने से उसने उसे अपने घर से निकाल दिया। निराश होकर रानी स्मशान भूमि में आई और वहीं उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसे एक मातंग [चाण्डाल ] उठा कर ले चला। रानी के विरोध करने पर उसने कहा कि वह यथार्थ में एक विद्याधर था। एक मुनि की शाप से मातंग होगया। उस शाप का प्रतीकार मुनि ने इस प्रकार से किया था कि जव करकण्ड का दन्तिपुर के श्मशान में जन्म हो तव उसे बालक को ले जाकर उसका लालन पालन करना चाहिये । बडा होने पर जब उसे उस नगर का राज्य मिल जावेगा तब वह मातंग पुनःविद्याधर होजावेगा। उसके इस प्रकार कहने पर तथा बालक का यथोचित रूप से लालन पालन करने की प्रतिज्ञा करने पर रानी ने अपना पुत्र उसे सौंप दिया। उस मातंग ने चालक को अच्छी तरह रक्खा और स्वयं खूब पढाया लिखाया । उस के हाथ में कण्डू (सूखी खुजली) होने से उसका नाम. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034918
Book TitleKarkanda Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKankamar Muni
PublisherKaranja Jain Publication
Publication Year1934
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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