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________________ लेकर उसने उन्हें अपना पति बना लिया। वहां की ऋद्धि का उपभोग करके अपनी नवल वधू सहित करकण्ड पुनः रतिवेगा से आ मिले । अब उन्होंने चोल, चेर और पाण्डा नरेशों की सम्मिलित सेना का मुकाबला किया और उन्हे हराकर अपना प्रण पूरा किया । अपना पैर उनके मस्तकपर रखते समय राजा को उनके मुकटी पर जिन प्रतिमा के दर्शन हुये । यह देखकर राजा को भारी पश्चात्ताप हुआ। उन्होने उन्हें पुनः गज्य देना चाहा, पर वे स्वाभिमानी दविडाधिपति यह कह कर तपस्या को चले गये कि अब हमारे पुत्रपौत्रादि ही आपकी सेवा करेंगे। वहां से लौटते हुए करकंड पुनः तरापुर आये। यहां उसी कुटिल विद्याधर ने पश्चात्ताप पूर्वक मदनावली को लाकर उन्हे सौंप दी। वे फिर चम्पानगरी को लौट आये और वहां राज्य-सुख भोगने लगे। एक दिन वनमाली ने आकर खबर दी कि नगर के उपबन में शीलगुप्त मुनिराज का शुभागमन हुआ है। राजा ने नगर में भेरी पिटवाई और भक्तिभाव सहित, पुरजनों के साथ, दर्शन को प्रस्थान किया। मार्ग में उन्होंने एक पुत्रशोक से व्याकुल, हा हा कार में मग्न अबला को देखा जिससे उनके चित्त में संसार की अनित्यता, जीवन की असारता आदि भावनायें उठने लगों । मुनि के पास पहुंच कर उन्होंने धर्मोपदेश श्रवण किया जिससे उनके चित्त में वैराग्य उत्पन्न होने लगा। फिर उन्हान मुनिराज से तीन प्रश्न किय, उनके सुंदर शरीर होने पर भी उनके हाथ में कण्डू क्यों हुई, उनके माता पिता में अतिनेह होने पर भी उनका वियोग क्यों हुआ, तथा उनकी प्रिया मदनावली को उस खचर ने क्यों हरा ? मुनिराज ने इन प्रश्नों के उत्तर इस प्रकार दिये । पूर्वजन्म में करकण्डु एक सेठ के यहां धनदत्त नामक बाल थे । एक दिन यह बाल भेस चराने गया था । उसे एक सरोवर में बड़ा सुंदर कमल दिखा जिसे उसने तोड़ लिया। तब एक देव ने आकर उससे कहा कि तूने यह बड़े साहस का काम कर डाला। अब तेरी खैर इसमें है कि तू इसे जो त्रिभुवन में बड़ा हो उसे चढा देना, नहीं तो मैं तुझे मार डालूंगा। ग्वाल ने विचारा कि मेरा स्वामी ही सब संसार में बड़ा है, उसकी अच्छे अच्छे मनुष्य सेवा करते हैं। इससे उसे ही यह पुष्प चढाना चाहिये यह विचार कर वह सेठ के सन्मुख उपस्थित हुआ और अपना मन्तव्य प्रकट किया । सेठ ने कहा निश्चयतः मुझ से बड़ा राजा है, इसलिये तूं यह फूल राजा को चढा । जब राजा के समीप वह उपस्थित हुआ तब राजा ने मुनिराज को अपने से बड़ा बताकर उसे उनके पास भेजा और मुनिराज ने जिनेन्द्र भगवान् के । अन्ततः उसने उस फूल से भगवान् की पूजा की जिसके फल स्वरूप उसे करकंडु का उत्तम स्वरूप और अतुल वैभव प्राप्त हुआ,और क्योंकि उसने कीचड़ से लिपटे हुए हाथ से वह कमल चढाया, इससे उसके हाथ में कण्डू हुई । दूसरे प्रश्न के उत्तर में मुनिराज ने कहा कि पूर्व जन्म में पद्मावती श्रावस्ती नगर के एक सेठ की स्त्री थी। उसने एक ब्राह्मण युवक के साथ दुराचार किया जिससे उसके पति ने विरक्त होकर तपस्या की और वह मरकर चम्पा का घाडीवाहन राजा हुआ। वह ब्राह्मण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034918
Book TitleKarkanda Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKankamar Muni
PublisherKaranja Jain Publication
Publication Year1934
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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