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प्रो० बदरीदास जी जैन देहली वालों ने गुरुदेव की तीर्थ सम्बन्धी सद्भावनाओं से प्रेरित होकर तीर्थोद्धार में हमें पूर्ण सहयोग दिया और बड़ी लग्न से तीर्थोद्धार के लिये परिश्रम करने लगे । और अब हमारे यह माननीय नेतागण सर्वदा के लिये स्वतंत्रतापूर्वक पूजा के पूर्ण अधिकार प्राप्त करने तथा प्रभु प्रतिमा का योग्य सिंहासन पर विराजमान कराने में प्रयत्नशील हैं । हमें पूरा विश्वास है कि हम देवगुरु की कृपा से अवश्य सफल होंगे ।
भूमि-दान :- कांगड़ा में कोई जैन- घराना नहीं है और न ही कोई अपना स्थान | हमें विचार पैदा हुआ कि वहाँ पर कोई जगह खरीद की जाये ताकि समयानुसार वहाँ कोई धर्मशाला, विद्यालय अथवा चिकित्सालय आदि खाल कर कुछ जैनों को बसाया जाये जिस से तीर्थ की देख रेख, मुरक्षा आदि कार्यों में सहयोग मिल सके । परिणाम स्वरूप किले के समीप ही उचित स्थान पर एक विशाल टुकड़ा ( जमीन ) बिक रहा था । उचित स्थान होने से और सरकार की इस क्षेत्र को फिर से बसाने की दृढ़ भावना देखते हुए सब योग्य सज्जनों ने यही सम्मति दी कि यह स्थान खरीद लिया जाये जिस पर बम्बई में आचार्य भगवान् श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज की सेवा में अपने भाव रखे गये । उन्होंने हमें उत्साह दिया जिस पर उन की प्रेरणा से गुजरांवाले के धर्मप्रेमी गुरु भक्त ला० मकनलाल प्यारे लाल जी जैन मिन्हानी अम्बाला निवासियों ने यह स्थान लग-भग ग्यारह सौ रुपया खर्च करके तीर्थोन्नति के भाव से भेंट किया । हमें विश्वास है कि श्रीमानों के शुभ भाव से दिया गया यह भूमि दान तीर्थ की उन्नति में अवश्य सहायक बनेगा और कोई समय आयेगा जब कि यहाँ पर देव-गुरु के शुभ नाम की कोई अमर स्थापना कायम होकर रहेगी।
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