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कीर्तन करते, नगर निवासियों से बड़े प्रेम से मिलते तीन दिनों तक तीर्थ-यात्रा का लाभ उठाने के बाद उसी रास्ते से संघ सुख शान्ति पूर्वक वापिस होश्यारपुर पहुँचा ।
दूसरा संघ - यह यात्रासंघ भो श्री हीरालाल भात्र होश्यारपुर के संघपतित्व में ही वयोवृद्ध शान्तमूर्ति मुनि श्री सुमतिविजय जी महाराज की छत्र छाया में संवत् १६ के लगभग निकाला गया था । पन्यास श्रीविद्याविजय जी उनके जन्म युगल भ्राना सहदीक्षित मुनि श्री विचारविजय जी तथा मुनि श्री उपेन्द्र विजय जी भी संघ में शामिल थे । इस यात्रा संघ में भी अच्छी रौनक थी और बड़े आनन्दपूर्वक
यात्रा का लाभ उठाया गया था ।
संवत् १९९६ का यात्रा संघ - यह यात्रा संघ संवत् १६६६ में पंजाब केसरी, कलिकालकल्पतरु, युगवीर, जैनाचार्य श्रीमद् विजवयल्लभ सूरीश्वर जी को छत्र-छाया में होश्यारपुर के धर्मप्रेमी श्रावक ला० नानकचन्द्र जो नाहर के संघपतित्व में होश्यारपुर से निकाला गया था । पन्यास श्री समुद्रविजय जी गणि, मुनि श्री शिवविजय जी, मुनि श्री विशुद्ध विजयजी आदि मुनिराज भी पधारे थे । पूर्व की भाँति इस यात्रासंघ में भी सैकड़ों नर-नारियों की भीड़ थी, बड़ी रौनक थी । बड़े उत्साहपूर्वक सारा कार्यक्रम चलता रहा और पूरे भक्ति-भाव से सैंकड़ों नर-नारियों ने यात्रा का आनन्द लिया था । क्रमबद्ध वार्षिक यात्रासंघ और उसकी रूप-रेखा
यूं ही भारत स्वतंत्रता-युद्ध सफलता को प्राप्त हुआ और भारत में गणतंत्र राज्य की स्थापना की घोषणा कर दी गई। हमारा मान्यतीर्थ भी सफलता की राह को प्राप्त करने के लिये करवट लेने लगा । सन् १९४७ की बात है कि होश्यारपुर के कुछ नव-युवकों के मन में विचार
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