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इस लेख को प्रकट किया है, के कथनानुसार, इस लेख की लिपि कीरग्राम की बैजनाथ प्रशस्ति की लिपि (शारदा लिपि) से मिलती जुलती है । इस से सन् ८५४ में यह लेख लिखा गया होना चाहिये ।" जिस लेख का ऊपर के अवतरण में ज्रिकर किया गया है वह लेख डाक्टर बुल्हर (G. Buhler Ph. D., L. L. D. C. I. E.) एपिग्राफिका इंडिका के प्रथम भाग में संक्षिप्त नोट के साथ प्रकट
किया है जिसकी नकल यहाँ दी जाती है । प्राचीन कांगड़ा नगर के बाज़ार में पार्श्वनाथ प्रतिमा का जैन लेख नीचे दिये हुए आठ पंक्तियों का शिलालेख कांगड़ा बाज़ार में आए हुए इन्द्रवर्मा के हिन्दू मन्दिर की कमान में रखी हुई एक पार्श्व - नाथ की प्रतिमा की गद्दी के ऊपर खोदा हुआ है। तेल और सिन्धूर से यह लेख इतना दब गया है कि इसके बहुत से अक्षर बिल्कुल दिखाई नहीं देते । अन्तिम पंक्ति सर्वथा नष्ट हो गई है ।
लेख
(१) ओम् संवत् ३० गच्छे राजकुले सूरिरभूच (द) - (२) भयचंद्रमाः [1] तच्छिष्यो मलचन्द्राख्य [स्त ] - (३) त्पदा (दां) भोजषट्पदः [ ॥ ] सिद्धराजस्ततः ढङ्गः (४) ढङ्गादजनि [चे ] कः । रल्हेति गृ[िहण] [त(५) स्य ] पा-धर्म-यायिनी । अजनिष्ठां सुतौ । (६) [तस्य ] [ जैन ] धर्मध (9) रायगौ । ज्येष्ठः कुण्डलको (७) [] [ता] कनिष्ठः कुमाराभिधः । प्रतिमेयं [च] (5)......FORT...... 7......gan | kan......[0] भाषान्तर
श्रम् ३० वें वर्ष में
राजकुलगच्छ में अभयचन्द्र नाम के आचार्य थे कि जिन के
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