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________________ ८४] [ जवाहर-किरणावली वीतराग दशा प्राप्त होती है। जो वीतराग बन गया है वही वास्तव में महापुरुष है। ऐसे वीतराग महापुरुषों का स्मरण करके जिन्होंने अपना कल्याण किया है, उन्हीं का परिचय अन्तगडसूत्र में दिया गया है । इसके दस अध्यायों में उन महापुरुषों का वर्णन किया गया है और बतलाया गया है कि उन्हेंाने किस प्रकार अपने कर्मों का विनाश करके सिद्ध, बुद्ध और मुक्त अवस्था प्राप्त की है। ऊपर जो विवेचन किया गया है, उससे यह स्पष्ट है कि इस अनादि कालीन संसार में महापुरुष अनंत हो चुके हैं। उनकी संख्या नहीं बतलाई जा सकती और न उनके नामों का ही उल्लेख किया जा सकता है। महापुरुष की जो परिभाषा बतलाई जा चुकी है वह जिस किसी में घट सकती है वही महापुरुष है। महापुरुष की महत्ता उसके नाम से नहीं है, गुणों से है। अतएव जो गुणों से महापुरुष है वही पूजनीय है, वही माननीय है। भक्तामरस्तोत्र में कहा है बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चितबुद्धिबोधात् , त्वं शंकरोऽसि भुवनत्रयशंकरत्वात् । धाताऽसि धीर ! शिवमार्गविधेर्विधानात् , व्यक्तं स्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ॥ अर्थात्-हे प्रभो ! देवता तुम्हारे बुद्धि-वैभव की पूजा करते हैं, इसलिए तुम्हीं बुद्ध हो, तीन लोक का कल्याण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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