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________________ ७२ [जवाहर-किरणावली ग्यारह सौ इकतालीस मनुष्यों की निर्मम हत्या करने वाले घोर हत्यारे को प्रेमपूर्वक गले लगाना और भगवान् के पास अपने साथ ले जाना क्या उचित था ? सुदर्शन सेठ की भावना उस समय कितनी उदार रही होगी ! उन्हें अर्जुन माली के पापों को धोना था । उसका सुधार करना अभीष्ट था। सुदर्शन को शात था कि भयानक से भयानक पापी की अन्तरात्मा में भी मंगलमूर्ति छिपी हुई है। उसकी बाह्य प्रकृति के उपशान्त होने पर वह मंगलमूर्ती प्रकट हो जाती है। जिनकी भावनाएँ बिगड़ी हुई हैं, उनमें उत्तम भावना उत्पन्न कर दो तो धर्म की कितनी सेवा होगी? आज नीच कहलाने वाले लोगों में धर्म की बड़ी आवश्यकता है। उनमें धर्म की भावना उत्पन्न करने का प्रयत्न करो। उनकी सेवा करो। उन्हें सद्भावना के बंधन में बाँधा और अच्छी राह पर लाओ। वे भी ईश्वर की मूर्ति हैं। उनके मैले-कुचैले तन में और मलीन मन के भीतरी भाग में ईश्वरत्व छिपा हुआ है। उसकी पहिचान उन्हें करा दो। अर्जुन माली को साथ लेकर सुदर्शन सेठ भगवान् के पास पहुँचे । अर्जुन माली पर भगवान् के उपदेश का प्रभाव पड़ा और उसका अज्ञान दूर दो गया । अर्जुन माली ने मुनिव्रत अंगीकार किये । उसने सुदर्शन से कहा-'मैं आपका आभारी हूँ। आपकी कृपा से ही यहाँ तक पहुँच सका हूँ ।'. उत्सर में सेठ बोले-ऐसा मत कहिए। आप बड़े हैं। मैं कई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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