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[ जवाहर-किरणावली
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यह था कि भीलनी को डाकिनी समझा जाता था । तारीफ़ यह है कि अनाज उन्हीं के यहाँ से आता था । वही अनाज पैदा करते थे और उन्हीं के प्रति ऐसी दुर्भावना थी । यह दुर्भावना किसी एक घर या कुटुंब में नहीं थी वरन् व्यापक रूप से घर-घर फैली हुई थी। आज सोचता हूँ-समाज का यह कितना जबर्दस्त अन्याय है ! कितनी भीषण कृतघ्नता है !
अमीर लोग गरीबों को दुत्कारते हैं और दूसरे अमीर के आने पर उसकी मनुहार करते हैं । अपने पाप का प्रायश्चित्त करते हुए एक महाराष्ट्रीय कवि ने कहा है
उत्तम जम्मा येऊनी रामा ! गेलो मी वाया दुष्ट पातकी शरण मी आलो,
सत्वर तष पाया। प्रार्जविले बहुलवण भंजने व्याया जेवाया
खुधित अतिथि कदी नाही घेतला, उदार कर कधों केला नाहीं प्रेमें जेवाया पैसा एक चाया नाम फुकटचे तेहिन थालें स्वामी बदनाया ||उत्तम ||१॥
कवि कहता है-मैं ने उत्तम जन्म व्यर्थ गँवा दिया। मेरा नाम उत्तम है, जन्म उत्तम कुल में हुआ हैं, परन्तु काम मैंने अधम किये । इस कारण मैं पातकी हूँ।
मित्रो ! जिसे आत्मा और परमात्मा पर विश्वास होगा, वही अपना अपराध स्वीकार करेगा, उसके लिए पश्चात्ताप
करेगा और उससे बचने की भावना पाएगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com