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बीकानेर के व्याख्यान ]
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किया।
काखी महारानी सफल कियो अवतार । पायो छे भव-जल पार ॥काली०॥
कोणिक राजा की छोटी माता, श्रेणिक नृप नी नार । वीर जिणन्द की वाणी सुन ने,
लीनो है संयम-भार ||काली०|| चन्दनबाला सती मिली है गुरानी। नित २ नमी चरणार, विनय कभी भणी
अंग इग्यारा जारी निर्मल बुद्धि अपार ||काली०॥१॥ महासती काली कहती है कि मैंने बढ़िया भोजन खाकर और बढ़िया कपड़े पहन कर बहुत लोगों के साथ परोक्ष रूप से विरोध किया है। जिन गरीबों की कृपा से उत्तम वस्त्र
और भोजन की प्राप्ति होती थी, उन गरीबों को मैंने धक्के दिलवाये, और निकम्मे मसखरे लोग पड़े-पड़े माल खाते रहे। गरीबों के घोर परिश्रम के फलस्वरूप ही हमें दूध, घी, शक्कर
और चावल आदि वस्तुएँ प्राप्त होती थी, मगर जब उन्हीं, गरीबों में से कोई मुट्ठी भर आटे की आशा से मेरे पास आता था तो उसे आटे के बदले धक्के मिलते थे कि दूध, घी और चावल-शक्कर खाने वालों को नज़र न लग जाय !
मैं जब बच्चा था तब भोजन करते समय अगर भीलनी प्राजाती तो हिरवाड़ बन्द कर लिये जाते थे । इसका कारण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com