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[जवाहरकिरणावली
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सुनते हैं और मुनि सुनाते हैं । इसका यह अर्थ नहीं होना चाहिए कि व्यापार में खूब धन कमाने के लिए आप सुने और मुनि सुनावें । व्यापार करते समय आप धन के चक्कर में पड़कर धर्म को न भूल जाएँ। आपको धन ही शरणभूत, मंगलमय और उत्तम न दिखाई दे वरन् धर्म को उस समय भी आप मंगलमय माने । इसी भावना से मुनि आपको मंगलपाठ सुनाते हैं और आपको भी इसी भावना से उसे सुनना चाहिए।
भोजन करते समय भी आप भगवान् शान्तिाथ को स्मरण रक्खो और विचार करो कि-'प्रभो! मुझे भत्य-अभक्ष्य का विचार रहे ।' मगर अाज ऐसा कौन करता है ? लोग बेभान होकर अभक्ष्य भक्षण करते हैं और लूंस-ठूस कर आवश्यकता से अधिक खा लेते हैं । वे सोचते हैं-अजीर्ण होगा तो औषधों की क्या कमी है ! मगर औषद्य के भरोसे न रह कर भगवान् शांतिनाथ को याद करो और सोचो कि मैं शरीर का ढाँचा रखने के लिए ही खाऊं और खाने में बेभान न हो जाऊँ। _____एक प्रोफेसर का कहना है कि मैं जब उपवास करता हूँ तो मेरी एकाग्रता बढ़ जाती है और मैं अवधान कर सकता हूँ। अगर उपवास न करूँ तेो अवधान नहीं कर सकता।
अगर आप अधिक उपवास न कर सकें तो महीने में चार उपवास ते किग करें । चार उपवास करने से भी औषध लेने की आवश्यकता नहीं रहेगी। अगर प्रसन्नता और सद्-- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com