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बीकानेर के व्याख्यान )
[३८३.
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राजा की भूल से।
ईसाई लोगों की मान्यता के अनुसार राजा ईश्वर का भेजा हुआ होता है। ईश्वर के द्वारा भेजा हुआ पुरुष कोई भूल नहीं कर सकता। अतएव वह जो भी कुछ करता है, उचित ही करता है । मगर यह विचार भ्रमपूर्ण है । मैं आचार्य हूँ। अगर मैं कहने लगूं कि मुझे ईश्वर ने प्राचार्य बनाया है, इसलिए मैं अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करूँगा और जो कुछ भी करूँगा वही उचित समझा जायगा। तो आप क्या कहेंगे? आप फौरन कहेंगे कि ईश्वर ने नहीं; संघ ने आपको आचार्य बनाया है और संघ को अधिकार है कि वह शास्त्र के विरुद्ध आचरण करने पर प्राचार्य की पदवी छीन ले। अगर कोई व्यक्ति अपराध करता है तो वह अपराध उसी व्यक्ति का समझा जाता है। लेकिन आचार्य के विषय में यह बात नहीं है । आचार्य अपराध करे तो वह न सिर्फ प्राचार्य का ही किन्तु उस संघ का भी समझा जायगा, जिस संघ का वह प्राचार्य है। क्योंकि संघ ने ही प्राचार्य को नियत किया है। यही बात राजा के विषय में है। प्रकृति के नियमों का पालन करके सब को सुविधा पहुँचाना राजा का धर्म है। इसके बदले वह प्रकृति का मालिक बन बैठे और कहने लगे कि मैं जैसे पृथ्वीपति हूँ उसी प्रकार सूर्यपति, चन्द्रपति जलपति और वायुपति भी हूँ, तो यह राजा का अन्याय समझा जायगा। राजा जीवन की सुविधाओं का स्वामी नहीं बन
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