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[जवाहर-किरणावली
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प्रकाश का उपयोग करे तो वह संयम से च्युत हो जाता है। लेकिन वह यदि सूर्य के प्रकाश का उपयोग न करे तो संयम का पालन नहीं हो सकता। सूर्य की साक्षी से ही हम लोग भोजन कर सकते हैं और संयम का परिपालन कर सकते हैं। सूर्य की साक्षी के अभाव में साधु को भोजन करने का निषेध है।
आपमें समभाव होता तो आप बिजली की अपेक्षा सूर्यचन्द्र से अधिक प्रसन्न होते । बिजली, सूर्य और चन्द्र की तरह व्यापक नहीं है, जीवन के लिए अनिवार्य भी नहीं है
और लाभदायक भी नहीं है, फिर भी आपको उसकी कीमत देनी पड़ती है, इसी कारण आप उसकी कद्र करते हैं । सूर्य और चन्द्रमा की कीमत नहीं देनी पड़ती. इस कारण उसकी कद्र नहीं की जाती और न उसका उपकार ही माना जाता है।
प्रकाश असल में प्रकृति की देन है। उसे राजा अपनी मिल्कियत समझे, यह राजधर्म न जाने कहां से निकल पड़ा है ? राजा समाज की शक्ति के लिए होता है। अगर वह धीरे-धीरे सब आवश्यक वस्तुओं को अपने कब्जे में कर ले और अपनी निजी चीज़ समझ कर मनचाहा कर लगा दे तो संसार का काम किस प्रकार चलेगा?
विशिष्ट पुण्य का उदय होने पर मनुष्य राजा बनता है। अतएव उसे प्रकृति के नियमों का विशिष्ट रूप से पालन करना
चाहिए। दूसरे की भूलों से उतनी हानि नहीं होती, जितनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com