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बीकानेर के व्याख्यान ]
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तुम्हें प्रकृति के ही भरोले रहना चाहिए। प्रकृति के विरुद्ध आचरण करने से विकृति बढ़ेगी।
आपके पूर्वजों के सामने विजली का प्रकाश नहीं था। नकली घी और नकली श्राटा आदि भी नहीं था। लेकिन शारीरिक बल में, बौद्धिक विकास में और मानसिक चिन्तन में वे बड़े थे या आप बड़े हैं ? .
'पूर्वज बड़े थे।'
उन्हें मोटर, बिजली, नकली घी आदि चीजें पसंद ही नहीं थीं। वे इन चीजों से घृणा करते थे और आप इनसे प्रेम करते हैं। आपने इन सब को अपनाया है सही, पर इसका परिणाम क्या हुआ है ? यही कि पहले के लोगों को वृद्धावस्था में भी चश्मे की आवश्यकता नहीं होती थी लेकिन
आजकल के बहुत से नवयुवकों को भी चश्मा लगाना पड़ता है। इस अन्तर का क्या कारण है ? आज 'इलेक्ट्रिक लाइट' का आविष्कार हुआ तो नेत्रों का प्राकृतिक प्रकाश कहाँ विलीन हो गया ? पहले के लोग क्या आजकल की तरह दवाइयों का सेवन करते थे ? वे दही और बाजरे की रोटियाँ खाते थे, फिर भी उनमें जैसी शक्ति थी वैसी आप माल-मलीदा खाने वालों में है ?
'नहीं!'
आप लोग प्रकृति से लड़ाई करके चाहे आगे बढ़ने की अाकांक्षा करें और चाहे 'वैज्ञानिक' नाम धराकर अभिमान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com