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[जवाहर-किरणावली
तुलना नहीं की जा सकती।
प्राचार्य मानतुंगजी ने भगवान् ऋषभदेव की स्तुति करते हुए यहाँ उनके शरीरसौन्दर्य का आलंकारिक वर्णन किया है। कहा गया है कि भगवान् का रूप, जिसे देखकर चण्डकौशिक जैसे क्रूर प्राणियों को भी शांति मिली है, ऐसे पुद्गल-परमाणुओं से बना है जो तीन लोक में सर्वश्रेष्ठ थे। मैं अनुमान करता हूँ कि जिन परमाणुओं से तेरा शरीर बना है वे परमाणु संसार भर में उतने ही थे। उनसे अधिक नहीं थे । अधिक होते तो तेरे शरीर के समान कोई दूसरा शरीर भी बना होता । लेकिन तेरे शरीर के समान शांतिमय और सुन्दर शरीर दूसरा नहीं है। इस कारण यही अनुमान होता है कि जितने श्रेष्ठ परमाणु तेरे शरीर में लगे हैं, उतने ही संसार में थे।
यह परमात्मा की स्तुति है । स्तुति वह है जिसके उच्चारण से आत्मा की परमात्मा के प्रति प्रीति जागृत होकर बँध जाय । आज जो स्तुति की गई है उसमें बतलाया गया है कि कहाँ तो आपका वह सुर नर उरग के नेत्रों को हरण करने 'वाला और देखने पर भी तृप्ति न हो ऐसा, संसार को आनन्द देने वाला मुख और कहाँ चन्द्रमण्डल ! संसार की किसी भी श्रेष्ठ और सुन्दर वस्तु से आपके मुख की उपमा दी जाय किन्तु वह उपमा ठीक नहीं बैठती । आपका मुख सभी उपमाओं को जीत चुका है। संसार की कोई भी वस्तु आपके मुख की समा‘नता नहीं कर सकती। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com