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यैः शान्तरागरुचिभिः परमाणुभिस्वं, निर्मापिस्त्रिभुवनैकललामभूत! तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां,
यत्त समाममपरं न हि रूपमस्ति ||१२|| तीनों लोकों में अद्वितीय सुन्दर प्रभो ! जिन शान्त और सुन्दर परमाणुओं के द्वारा आपका निर्माण हुआ है, जान पड़ता है कि पृथ्वी पर वे परमाणु उतने ही थे । क्योंकि तुम्हारे समान दूसरा कोई रूप नहीं है।
वक्त्रं व ते सुरनरोरगनेत्रहारि, निःशेषनिर्जितजगत्रितयोपमानम् । विम्बं कलङ्कमलिनं क्व निशाकरस्य,
यद्वासरे भवति पाण्डुपलाशकल्पम् ||१३!। अर्थ-प्रमा! सुर, नर और नागकुमारों के नेत्रों को हरण करने वाला और तीन लोक की समस्त उपमाओं को जीतने वाला कहाँ तो आपका मुख और कहाँ कलंक से मलीन चन्द्रमा का विम्ब ! चन्द्रमा का विम्ब तो दिन में ढाक के सूखे पत्ते के समान फीका पड़ जाता है ! उसके साथ आपके मुख की
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