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[ जवाहर - किरणावली
के इस चरित से प्रकट होता है कि उस समय अनेक महात्माओं ने आश्चर्यजनक सादगी धारण की थी ।
राम ने जनक के घर और अपने घर कैसे-कैसे बढ़िया भोजन किये होंगे ? परन्तु वनवास के समय वे अपने साथ कुछ ले गये थे ? 'नहीं ।'
उन्होंने वन में खट्टे-मीठे, कटुक- कसैले वनफल खाये थे । उन फलों को पकाने वाली सीता थी और लाने वाले लक्ष्मण थे | क्या आज के धनिक लोग इस प्रकार का जीवन व्यतीत कर सकते हैं ? आज तो ऐसी स्थिति की कल्पना मात्र से ही लोगों का गला सूखने लगता है !
राणा प्रताप अठारह वर्ष तक अपनी रानी और अपने बालबच्चों के साथ वन में भटकते रहे । जङ्गली अन्न और फलों से गुज़ारा करते रहे। उस रूखे-सूखे भोजन के समय भी जब शत्रु आ पहुँचते तो भोजन त्याग कर उनका सामना करते रहे। आज के लोग भोगों के कीड़े बन रहे हैं, इसी से उन्हें यह घटनाएँ कल्पित मालूम पड़ती हैं ।
रामचन्द्र को वन के कटुक फल क्यों अच्छे लगे थे ? क्या कारण था कि भरत और कैकेयी के अयोध्या लौटने के
ग्रह को ठुकराकर उन्होंने वनवास के कष्टों को स्वेच्छापूर्वक अंगीकार किया ? राम समग्र भारत के समक्ष एक आदर्श उपस्थित करना चाहते थे । इसी लिए उन्होंने हँसते-हँसते
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