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बीकानेर के व्याख्यान]
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ली। एक दूसरी वेश्या की बातों में आकर धन के लिए मैंने इस धनिक की हत्या की ।'
वेश्या या बयान सुनते-सुनते टाल्सटाय घबरा उठा। उसकी अन्तरात्मा प्रश्न करने लगी-इस हत्या के लिए कौन उत्तरदायी है-वेश्या या मैं ? वास्तव में इस पाप के लिए यह अपराधिनी नहीं है । अपराधी मैं हूँ।
लोग अपने अपराधों को छिपाना जानते हैं, उन्हें स्वीकार करना नहीं आता। इस अविद्या से आज संसार पतित हो रहा है।
टाल्सटाय अपने पाप की भीषणता का विचार करके इतने घबराये कि पसीने से तर हो गये। पास में बैठे हुए दूसरे न्यायाधीश उसकी यह दशा देखकर आश्चर्य करने लगे। टाल्सटाय की परेशानी और घबराहट का कारण समझ में नहीं प्राया । टाल्सटाय ने अपना आसन छोड़ दिया। उनकी जगह दूसरा जज अभियोग का विचार करने के लिए बैठा। टाल्सटाय ने जाते हुए अपने स्थानापन्न जज से कहा-किसी भी उपाय से इस वेश्या को फांसी से बचा लेना।
टाल्सटाय एकान्त में जाकर जी भर रोये और अपने अपराध के लिए पश्चात्ताप करने लगे। वह सोचने लगे-इस वेश्या के समस्त पापों का कारण मैं ही हूँ। वेश्या पापिनी नहीं, मैं पापी हूँ। मैंने ही इसे पापकार्य में प्रवृत्त किया है। ईश्वर का उपदेश दूसरी जगह नहीं, उन बन्धुओं से ही मिल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com