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[जवाहरे-किरणावली
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पड़कर स्वतंत्रता को भूल गये हैं। मगर अाप विचार करेंगे तो चींटी के सामने रेल तुच्छ दिखाई देगी। चींटी क्या-क्या करती है, किस-किस प्रकार से कैसी-कैसी बातों का पता लगाती है, और किस प्रकार संगठित होकर कार्य को सम्पादित करती है, इत्यादि बातों पर विचार करेंगे तो चींटी के सामने मनुष्य को भी लजित हो जाना पड़ेगा। . __ कहने का आशय यह है कि जब दूध का खून आदि बन जाता है तो यह सिद्ध है कि आत्मा में शक्ति है। प्रश्न यही है कि उस शक्ति का उपयोग कहाँ किया जाय ? इस सम्बन्ध में विद्वानों और शास्त्रकारों का मत है कि जड़ पदार्थों के प्रति जो अहंकार है, उसे हटा लिया जाय और आत्मा की समस्त शक्ति उसे ऊर्ध्वगामी बनाने में ही लगाई जाय । ऐसा करने से आत्मा की शक्ति बढ़ेगी और वह परमात्मा बन जायगा ।
कल एक सजन (श्री रामनरेश त्रिपाठी) के सामने मैंने टाल्सटाय का जिक्र किया । तब उन्होंने उसके जीवन की एक बात मुझे सुनाई। उसके पतित जीवन का उत्थान किस प्रकार हुआ, यह दिखलाने के लिए ही मैं उस घटना का उल्लेख कर रहा हूँ । टाल्सटाय का पतन इतना अधिक हो चुका था कि उसके कुकृत्यों की पराकष्ठा हो चुकी थी। शायद ही कोई कुकर्म शेष रहा होगा, जिसका टाल्सटाय ने सेवन न किया हो। ऐसी पतित आत्मा एक वेश्या की घटना से जागृत हो उठी।
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