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बीकानेर के व्याख्यान]
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हे भुवनभूषण ! हे भूतनाथ ! मुझे इस बात से आश्चर्य नहीं होता कि आपके गुणों का अभ्यास करने वाला, आपके गुणों में तल्लीन हो जाने वाला, और आपका स्मरण करने वाला श्राप सरीखा ही हो जाता है। ऐसा होना कोई अद्भुत बात नहीं है । संसार में भी देखा जाता है कि लक्ष्मीवान की सेवा करने वाले को लक्ष्मीवान् अपना--सा बना लेता है । फिर जो तेरा भजन करके तेरी शरण में आए, वह अगर तेरे ही समान बन जाए तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ?
समुद्र में पड़े हुए को जब कोई आधार न मिल रहा हो, तब अचानक ही अगर नौका का आश्रय मिल जाय तो उसके आनन्द का पार नहीं रहता। वह नौका पाकर अत्यन्त प्रसन्न होता है। इसी प्रकार भवसागर में पड़े हुए प्राणियों के लिए परमात्मा परम आधार है और भक्त जन इस आधार को पाकर असीम और अनिर्वचनीय आनन्द अनुभव करते हैं !
किसी सेठ की सेवा करने पर सेठ सेवक पर प्रसन्न होकर उसके दारिद्रय दूर कर देता है। सेठ की सच्ची सेठाई इसी में है कि वह अपने उपकारक या सहायक के उपकार के प्रति कृतज्ञता प्रकट करे और उसे अपना-सा बना ले। जो सेठ अपने सेवक की सम्पूर्ण शक्तियों को अपने हित में प्रयुक्त करता रहता है, उसके द्वारा धन-दौलत, यश, प्रतिष्ठा आदि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com