________________ बीकानेर के व्याख्यान] [307 उसकी सम्पत्ति पाप रूप हो जाती है। सम्पत्ति में प्रायः यह बात पाई जाती है, इसी कारण सम्पत्ति-परिग्रह-की गणना पाप में की गई है। पाप सोना-चाँदी में नहीं बैठा है, किन्तु धन की ममता में फँसकर गरीबों से दूर रहने और गरीबों का रङ्गशोषण करके भन बढ़ाने की तृष्णा में पाप है। कल्पना कीजिए-एक सेठ बग्घी में बैठा जा रहा है और एक किसान अपनी बैलगाड़ी में बैठा आ रहा है ।मान में एक तीसरा गरीब और बेहाल थका हुआ पथिक मिला / वह अगर बग्घी और गाड़ी में अपने को बिठा लेने की प्रार्थना करे तो उसे कौन बैठा लेगा? 'किसान !' बग्घी वाले को तो वह थका हुआ बटेाही भूत-सा दिखाई देगा। लेकिन किसान के दिल में दया उपजेगी और वह अपनी गाड़ी में उसे विठा लेगा / इन दोनों में से किसे पुण्यवान् समझना चाहिए ? इसीलिए कहा है दया धर्म पाचे तो कोई पुण्यवंत पावे / जाने दया की बात सुहावे जी / भारी कर्मा ने अनन्त संसारी, आरे दया दाब नहिं भावें जी // दया० / / गरीबों और अमीरों के बीच मेदभाव की दीवाल खड़ी हो गई है, जिससे अमीर लोग गरीबों से अलग रहते हैं। इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com