SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीकानेर के व्याख्यान] [२६६ जहाँ प्रारंभ ही आरंभ है, प्रशंसा क्यों करता है ? इसका कारण यही है कि जहाज में बैठे हुए भी धर्मात्मा की भावना परमात्मा में ही लगी है। धर्मभावना वाला पुरुष चाहे जहाज में बैठा हो, चाहे पौषधशाला में बैठा हो, मन उसका परमात्मा में ही लगा रहता है। इसी कारण वह इन्द्र द्वारा प्रशंसनीय हो जाता है। __ आप यह न समझे कि धर्म केवल पौषधशाला में ही है, अन्यत्र पाप ही पाप है। इस प्रकार की भावना से पाप की अधिक वृद्धि होती है। आपका विचार यह होना चाहिए कि मैं धर्मी हूँ और धर्म की आजीविका करता. हूँ। पौषधशाला तो धर्म की शिक्षा-शाला है। उस शिक्षा का उपयोग तो बाहर ही होता है अगर आपने पाठशाला में पाँच और पाँच दस गिने और पाठशाला से बाहर निकलते ही ग्यारह गिनने लगे, तो आपकासीखना निरर्थक हुआ । इसी प्रकार अगर पौषधशाला में धर्म की शिक्षा ली और बाहर जाकर उसे भूल गये और अधर्म में प्रवृत्त हो गये, कपट करने लगे, झूठ बोलने लगे, तो आपकी वह शिक्षा व्यर्थ हुई। धर्म का संस्कार धर्मस्थान से ऐसा ग्रहण करो कि वह जीवन व्यवहार में काम आवे । कदाचित् श्राप सोचते हों कि व्यवहार में धर्म का अनुसरण करने से काम नहीं चलेगा, व्यवहार चौपट हो जायगा, तो आप अपने हृदय से यह भ्रम दूर कर दीजिए | धर्म का घ्यावहारिक अनुसरण करने वाले कभी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy