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________________ २६०] [ जवाहर-किरणावली सजनों के मन को हरण करने वाली होनी ही चाहिए । जल का बूंद जब कमलिनी के पत्ते पर ठहरा होता है तब मोती की तरह चमकने लगता है, यह बात छिपी नहीं है। यह बड़ाई उस पानी की नहीं है किन्तु उस स्थान की है, जिसे पाकर वह चमकने लगता है। मेरे शब्द भी पानी के समान हैं किन्तु आपका आधार पाकर अर्थात् आपकी स्तुति के काम में आकर वे मोती के समान हो गये हैं। मित्रो ! मानतुंगाचार्य के काव्य की उत्तमता को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि वे विद्वान् नहीं थे या उनका काव्य साधारण कोटि का है। उनकी कविता से प्रकट है कि वे असाधारण विद्वान् थे । ऐसा होते हुए भी उन्होंने जो नम्रता प्रकट की है, वह हम लोगों को मार्ग दिखाने के लिए है। प्राचार्य दिग्गज विद्वान् और भक्त कवि थे। ऐसी सुन्दर रचना करना साधारण कवि का काम नहीं है। इसमें भाषा की सुन्दरता के साथ भावों की जो विशिष्ट सुन्दरता है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इसके रचियता असामान्य भक्त विद्वान थे। फिर भी उन्होंने जो नम्रता प्रकट की है उससे हम लोगों को यह सूचना मिलती है कि अपनी शक्ति का अहंकार तज दो । शब्द चाहे जैसे हों, परमात्मा को समर्पित कर दो। मुझ अल्पबुद्धि वाले के शब्द भी प्रभु की स्तुति में लगने के कारण सज्जनों का मन हरण करेंगे. यह कहकर प्राचार्य प्रकट करते हैं कि मनुष्य को देखना चाहिए कि उसके शब्द Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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